मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-4

पेज-25

चौधरी को पुनिया की इस दुर्गति पर दया आ गई। हीरा को उदारतापूर्वक समझाने लगा - हीरा महतो, अब जाने दो, बहुत हुआ। क्या हुआ, बहू ने मुझे मारा। मैं तो छोटा नहीं हो गया। धन्य भाग कि भगवान ने यह दिन तो दिखाया।

हीरा ने चौधरी को डाँटा - तुम चुप रहो चौधरी, नहीं मेरे क्रोध में पड़ जाओगे तो बुरा होगा। औरतजात इसी तरह बहकती है। आज को तुमसे लड़ गई, कल को दूसरों से लड़ जायगी। तुम भले मानुस हो, हँस कर टाल गए, दूसरा तो बरदास न करेगा। कहीं उसने भी हाथ छोड़ दिया, तो कितनी आबरू रह जायगी, बताओ।

इस खयाल ने उसके क्रोध को फिर भड़काया। लपका था कि होरी ने दौड़ कर पकड़ लिया और उसे पीछे हटाते हुए बोला - अरे, हो तो गया। देख तो लिया दुनिया ने कि बड़े बहादुर हो। अब क्या उसे पीस कर पी जाओगे?

हीरा अब भी बड़े भाई का अदब करता था। सीधे-सीधे न लड़ता था। चाहता तो एक झटके में अपना हाथ छुड़ा लेता, लेकिन इतनी बेअदबी न कर सका। चौधरी की ओर देख कर बोला - अब खड़े क्या ताकते हो? जा कर अपने बाँस काटो। मैंने सही कर दिया। पंद्रह रुपए सैकड़े में तय है।

कहाँ तो पुन्नी रो रही थी। कहाँ झमक कर उठी और अपना सिर पीट कर बोली - लगा दे घर में आग, मुझे क्या करना है! भाग फूट गया कि तुझ जैसे कसाई के पाले पड़ी। लगा दे घर में आग।

उसने कलेऊ की टोकरी वहीं छोड़ दी और घर की ओर चली। हीरा गरजा - वहाँ कहाँ जाती है, चल कुएँ पर, नहीं खून पी जाऊँगा।

पुनिया के पाँव रूक गए। इस नाटक का दूसरा अंक न खेलना चाहती थी। चुपके से टोकरी उठा कर रोती हुई कुएँ की ओर चली। हीरा भी पीछे-पीछे चला।

होरी ने कहा - अब फिर मार-धाड़ न करना। इससे औरत बेसरम हो जाती है।

धनिया ने द्वार पर आ कर हाँक लगाई - तुम वहाँ खड़े-खड़े क्या तमासा देख रहे हो? कोई तुम्हारी सुनता भी है कि यों ही सिच्छा दे रहे हो। उस दिन इसी बहू ने तुम्हें घूँघट की आड़ में डाढ़ीजार कहा था, भूल गए। बहुरिया हो कर पराए मरदों से लड़ेगी, तो डाँटी न जायगी।

होरी द्वार पर आ कर नटखटपन के साथ बोला - और जो मैं इसी तरह तुझे मारूँ?

'क्या कभी मारा नहीं है, जो मारने की साध बनी हुई है।'

'इतनी बेदरदी से मारता, तो तू घर छोड़ कर भाग जाती! पुनिया बड़ी गमखोर है।'

'ओहो! ऐसे ही तो बड़े दरदवाले हो। अभी तक मार का दाग बना हुआ है। हीरा मारता है तो दुलारता भी है। तुमने खाली मारना सीखा, दुलार करना सीखा ही नहीं। मैं ही ऐसी हूँ कि तुम्हारे साथ निबाह हुआ।

'अच्छा रहने दे, बहुत अपना बखान न कर! तू ही रूठ-रूठ नैहर भागती थी। जब महीनों खुसामद करता था, तब जा कर आती थी।'

'जब अपने गरज सताती थी, तब मनाने जाते थे लाला! मेरे दुलार से नहीं जाते थे।'

'इसी से तो मैं सबसे तेरा बखान करता हूँ।'

 

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