मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-4

पेज-27

धनिया अंदर चली गई थी। बाहर आई तो रुपए जमीन पर पड़े देखे, गिन कर बोली - और रुपए क्या हुए, दस न चाहिए?

होरी ने लंबा मुँह बना कर कहा - हीरा ने पंद्रह रुपए में दे दिए, तो मैं क्या करता।

'हीरा पाँच रुपए में दे दे। हम नहीं देते इन दामों।'

'वहाँ मार-पीट हो रही थी। मैं बीच में क्या बोलता?'

होरी ने अपने पराजय अपने मन में ही डाल ली, जैसे कोई चोरी से आम तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़े और गिर पड़ने पर धूल झाड़ता हुआ उठ खड़ा हो कि कोई देख न ले। जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।

धनिया पति को फटकारने लगी। ऐसे अवसर उसे बहुत कम मिलते थे। होरी उससे चतुर था, पर आज बाजी उसके हाथ थी। हाथ मटका कर बोली - क्यों न हो, भाई ने पंद्रह रुपए कह दिए, तो तुम कैसे टोकते? अरे, राम-राम! लाड़ले भाई का दिल छोटा हो जाता कि नहीं! फिर जब इतना बड़ा अनर्थ हो रहा था कि लाड़ली बहू के गले पर छुरी चल रही थी, तो भला तुम कैसे बोलते! उस बखत कोई तुम्हारा सरबस लूट लेता, तो भी तुम्हें सुधा न होती।

होरी चुपचाप सुनता रहा। मिनका तक नहीं। झुँझलाहट हुई, क्रोध आया, खून खौला, आँख जली, दाँत पिसे, लेकिन बोला नहीं। चुपके-से कुदाल उठाई और ऊख गोड़ने चला।

धनिया ने कुदाल छीन कर कहा - क्या अभी सबेरा है जो ऊख गोड़ने चले? सूरज देवता माथे पर आ गए। नहाने-धोने जाव। रोटी तैयार है।

होरी ने घुन्ना कर कहा - मुझे भूख नहीं है।

धनिया ने जले पर नोन छिड़का - हाँ, काहे को भूख लगेगी! भाई ने बडे-बड़े लड्डू खिला दिए हैं न। भगवान ऐसे सपूत भाई सबको दें।

होरी बिगड़ा। और क्रोध अब रस्सियाँ तुड़ा रहा था? तू आज मार खाने पर लगी हुई है!

धनिया ने नकली विनय का नाटक करके कहा - क्या करूँ, तुम दुलार ही इतना करते हो कि मेरा सिर फिर गया है।

'तू घर में रहने देगी कि नहीं?'

'घर तुम्हारा, मालिक तुम, मैं भला कौन होती हूँ तुम्हें घर से निकालने वाली?'

होरी आज धनिया से किसी तरह पेश नहीं पा सकता। उसकी अक्ल जैसे कुंद हो गई है। इन व्यंग्य-बाणों के रोकने के लिए उसके पास कोई ढाल नहीं है। धीरे से कुदाल रख दी और गमछा ले कर नहाने चला गया। लौटा कोई आधा घंटे में, मगर गोबर अभी तक न आया था। अकेले कैसे भोजन करे। लौंडा वहाँ जा कर सो रहा। भोला की वह मदमाती छोकरी है न झुनिया। उसके साथ हँसी-दिल्लगी कर रहा होगा। कल भी तो उसके पीछे लगा हुआ था। नहीं गाय दी, तो लौट क्यों नहीं आया। क्या वहाँ ढई देगा।

 

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