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प्रियवदंबा

सौरभ कुमार

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उन अश्कों के लिए जो कभी उन आंखों में छलके

प्रियवदंबा

(गांगेय: अम्बा से प्रियवदंबा तक)

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28.

प्रियांका लौट आ चुकी थी। अब वह अपने जीवन में आंद्रेय के अभाव को समझ चुकी थी। बिना कुछ कहे वह प्रियांका के साथ दिल्ली जा रहा था। यह भी सही है कि वह प्रियांका के साथ संपूर्ण रूप से जा रहा था। दोनों हीं चुप जा रहे थे। मेरठ के पास से गुजरते हुए एक पतली दुबली सी संन्यासी युवती सबकुछ भुला कर शांति अपनाने की बात कर रही थी। साधना हीं मानो सबकुछ भुलाने की हो। ध्यान का केन्द्र उससे अलग नहीं था। सारा जनसमूह उसके वक्तव्य को कितने ध्यान से सुन रहा है-प्रियांका ने कहा। उसके कथ्य को या उसे ध्यान का केन्द्र बना लिया है-आंद्रेय ने कहा। यह सच है आंद्रेय संपूर्ण रूप से प्रियांका के लिए जा रहा था। परंतु क्या यह कहा जा सकता है कि वह हमेशा के लिए जा रहा है। क्या वह अगले जन्म में यहाँ या अम्बा जहाँ होगी वह वहाँ नहीं जाएगा। भींगे दरवाज के पल्ले को पीछे धकेल कर एक संदेश को रख कर वह आगे मुड़ कर हाथ को पीछे कर तर्जनी और मध्यमा से दो बार नॉक कर वह जा चुका था। भींगा दरवाजा पुन: अपने स्थिति पर आ गया और संदेश अब उन हाथ में था जिसके लिए उसे रखा गया था। श्वाँस को धीमा कर स्थिर रख कर ध्यान करने वाली श्वाँस तेज हो चुकी थी। श्वाँस की लय के साथ प्रियवदंबा के वक्ष भी अस्थिर हो चुके थे। ललाट पर स्वेदकण के साथ उसने पढ़ा-
"जिसे कभी हमने ठुकराया था आज उसके दर पर खड़ा हूँ, उससे प्यार करने को, उससे ठुकराये जाने को। उससे स्वीकार किए जाने को। तुम्हें हक है हमें ठुकरा दो। हम फिर आयेंगे तुम्हारे लिए तुम्हारे अगले जन्म में भी। यह सिलसिला है कई जन्मों का, आया हूँ तुम्हें प्यार करने को, तुमसे ठुकराये जाने को, तुमसे स्वीकारे जाने को।"
प्रियवदंबा ने अस्पष्ट स्वर में खुद से कहे बिना नहीं रह पायी-
"कई जन्मों की प्यास है ये। दिन, महीने, साल नहीं कई जन्म की प्यास है ये। तुम्हें भी आना है मेरे लिए। मुझसे ठुकराये जाने के लिए। मुझसे प्यार करने के लिए।"
संदेश टुकड़े में बँट चुका था और वो ठुकड़े प्रियवदंबा पर गिर हीं नहीं रहे थे उन ठुकड़ों से प्रियवंदबा स्नान कर रहीं थी। वे ठुकड़े नहीं थे, संदेश भी नहीं थे, कई जन्मों की आहत तृषा की संपूर्णता भी थी। प्यार की संपूर्णता क्या सिर्फ स्वीकारे जाने में हीं है। कई बार प्यार ठुकड़ाये जाने में संपूर्ण होता है। प्यार के प्यार होने में संपूर्ण होता है। प्रियवदंबा नृत्य की मुद्रा में आ चुकी थी। उसके एक कदम आगे थे बाँया हाथ नीचे था तो दाहिना हाथ सिर के ऊपर उठ कर ठुकड़ों की उसके ऊपर वर्षा कर रहे थे। वह हॉल में आ चुकी थी। वह दोनों बॉहों को फैलाकर धीरे धीरे चक्कर लगा रही थी। आवृत्ति तेज होते जा रही थी। उसके एक पैर हवा में थे। वह घूमते हुए तलवे से भी आगे सिर्फ अपने अंगूठे पर संतुलन पर थी। उसकी इस परिपूर्णता में उसके अंगूठे का पुराना नाखून जगह को रिक्त कर गया था।       
प्रियवदंबा प्यार को ठुकड़ा कर, अकेले होकर भी किसी के फिर उसके लिए आने के अहसास से संपूर्ण थी।

 

 

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