राग नट-नारायन
चरावत बृंदाबन हरि धेनु |
ग्वाल सखा सब संग लगाए, खेलत हैं करि चैनु ||
कोउ गावत, कोउ मुरलि बजावत, कोउ विषान, कोउ बेनु |
कोउ निरतत कोउ उघटि तार दै, जुरि ब्रज-बालक-सेनु ||
त्रिबिध पवन जहँ बहत निसादिन, सुभग कुंज घन ऐनु |
सूर स्याम निज धाम बिसारत, आवत यह सुख लैनु ||
श्रीकृष्णचन्द्र वृन्दावनमें गायें चरा रहे हैं और सब गोपसखाओको साथ लेकर आनन्दकी
सृष्टि करते हुए खेल रहे हैं | कोई गाता है, कोई वंशी बजाता है, कोई सींग बजाता है
और कोई बाँसकी नली ही बजाथा है | व्रजके बालकों की सेना एकत्र हो गयी है; उनमें
कोई नाचता है, कोई ताल देकर समपर तान तोड़ता है | जहाँ त्रिविध (शीतल, मन्द,
सुगन्ध) पवन रात-दिन चलता है और सुन्दर घने कुञ्ज ही निवासस्थान हैं , सूरदासजी
कहते हैं- वहाँ (वृन्दावनमें) श्यामसुन्दर अपने घरको भी भूलकर यह (क्रीड़ाका) सुख
लेने आते हैं|
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217