राग कान्हरौ
आजु बने बन तैं ब्रज आवत |
नाना रंग सुमन की माला, नंदनँदन-उर पर छबि पावत ||
संग गोप गोधन-गन लीन्ह, नाना कौतुक उपजावत |
कोउ गावत, कोउ नृत्य करत, कोउ उघटत, कोउ करताल बजावत ||
राँभति गाइ बच्छ हित सुधि करि, प्रेम उमँगि थन दूध चुवावत |
जसुमति बोलि उठी हरषित ह्वै, कान्हा धेनु चराए आवत ||
इतनी कहत आइ गए मोहन, जननी दौरि हिए लै लावत |
सूर स्याम के कृत्य जसोमति, ग्वाल-बाल कहि प्रगट सुनावत ||
भावार्थ :-- आज मोहन वनसे सजे हुए आ रहे हैं | अनेक रंगोंके पुष्पोंकी माला श्री
नन्दनन्दनके वक्षःस्थलपर शोभा दे रही है | साथमें गोपकुमार तथा गायोंका समूह लिये
अनेक प्रकारकी चाल चलकर कुतुहलकी सृष्टि करते आते हैं | कोई गाता है, कोई
समयपर तान तोड़ रहा है, कोई उछलता है और कोई हाथसे तालियाँ बजाता है |
गायें बछड़ोंका स्मरण करके उनके लिये प्रेमसे रँभा रही है और प्रेमसे उमंगमें भरकर
थनोंसे दूध टपका रही हैं | श्रीयशोदाजी हर्षित होकर पुकार उठीं --
`कन्हाई गायें चराकर आ रहा है | (उनके) इतना कहते ही मोहन आ गये, माता दौड़कर
(उठाकर) उन्हें हृदयसे लगा रही हैं | सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दरके (वनमें
किये) काम गोपबालक स्पष्ट वर्णन करके यशोदाजीको सुनाते हैं |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217