राग मलार
देखौ माई ! बदरनि की बरियाई |
कमल-नैन कर भार लिये हैं , इन्द्र ढीठ झरि लाई ||
जाकै राज सदा सुख कीन्हौं, तासौं कौन बड़ाई |
सेवक करै स्वामि सौं सरवरि, इन बातनि पति जाई ||
इंद्र ढीठ बलि खात हमारी, देखौ अकिल गँवाई |
सूरदास तिहिं बन काकौं डर , जिहिं बन सिंह सहाई ||
भावार्थ :-- `अरे! इन बादलोंकी जबरदस्ती तो देखो!' कमललोचन श्याम तो हाथपर
(पर्वतका) भार उठाते थे और ढ़ीठ इन्द्रने झड़ी लगा रखी थी | जिसके राज्यमें (रहकर)
सदा सुख करते रहे, उसीसे क्या बड़प्पन दिखाना| सेवक स्वामीसे बराबरी करने चले -
ऐसी बातोंसे सम्मान नष्ट ही होता है! देख तो, बुद्धि खोकर ढीठ इन्द्र हमारी बलि
(भेंट) खाता था (हम व्रजके लोग जो इन्द्रके भी सम्मान्य हैं, उनके द्वारा की हुई
पूजा स्वीकार करता था) सूरदासजी कहते हैं--जिस वनका सिंह (स्वामी) कन्हाई है,
उस वनमें भला, किसका भय |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217