सूरदास
परिशिष्ट
पदों में आये मुख्य कथा-प्रसंग
वाराहावतार
ब्रह्माजी अपने ब्रह्मलोकमें बैठे पहले मानसी सृष्टि कर रहे थे | उस समय पृथ्वी
समुद्रमें डूब गयी थी | जब ब्रह्माजीने मनु को उत्पन्न करके उन्हें सृष्टिके
विस्तार की आज्ञा दी, तब मनु ने कहा--`मेरी संतानोंके रहनेका स्थान तो पृथ्वी है |
उसके उद्धारका यत्न कीजिये |'
ब्रह्माजी दूसरा कोई उपाय न देखकर भगवान् ध्यान करने लगे | उसी समय उनकी नाकसे
ही अँगूठेके बराबर वाराह-शिशुके रूप में भगवान् प्रकट हुए | तनिक देरमें वाराह
भगवान् का शरीर पर्वतके समान विशाल हो गया | वे समुद्रके जलमें घुस गये |
दितिका पुत्र हिरण्याक्ष इतना बलवान् था कि उससे कोई युद्ध कर नहीं सकता था | वह
युद्ध करनेके लिये प्रतिद्वन्द्वी ढूँढ़ता तीनों लोकोंमें घूम रहा था | नारदजीने
उसे पाताल जाकर वाराहभगवान् से युद्ध करनेको कहा | वह जब पाताल पहुँचा तब भगवान्
वाराह पृथ्वीको दाँतोंपर उठाकर ला रहे थे | हिरण्याक्ष उनके पीछे लग गया | ऊपर आकर
भगवान् ने पृथ्वीकी स्थापना की और फिर युद्ध करके हिरण्याक्ष दैत्यको मार दिया |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217