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सूरदास

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सूरदास

परिशिष्ट

पदों में आये मुख्य कथा-प्रसंग

नृसिंहावतार

भगवान् नारायण ने वाराहवतार धारण करके हिरण्याक्षको मार दिया, इससे उसके बड़े भाई
हिरण्यकशिपुको बड़ा क्रोध आया | उसने घोर तपस्या प्रारम्भ खी | अन्तमें जब ब्रह्मा
जी प्रसन्न होकर वरदान देने आये, तब उसने कहा-`मैं आपकी सृष्टिके किसी प्राणीसे,
मनुष्य या पशुसे, पृथ्वीमें या आकाशमें, दिनमें या रातमें , घरमें या बाहर, किसी
अस्त्र-शस्त्र से न मारा जाऊँ |'
यह वरदान पाकर वह अजेय हो गया | स्वर्गपर उसने अधिकार कर लिया | सभी देवता और
लोकपाल भयसे उसकी सेवा करने लगे | उसने वेद-पाठ यज्ञ तथा भगवान् का नाम लेना तक
अपराध घोषित कर दिया |
हिरण्यकशिपुके छोटे पुत्र प्रहलाद परम भगवद्भक्त थे | वे भगवान की भक्ति छोड़ दें--
इसके लिये हिरण्यकशिपुने उन्हें बहुत समझाया, डराया-धमकाया और जब वे न माने तो
उन्हें मार डालनेकी चेष्टा करने लगा | लेकिन विष देकर, अग्निमें डालकर, समुद्रमें
डुबाकर, पर्वतसे गिराकर, सर्प तथा सिंहादिके सामने डलवाकर, मारण-प्रयोग करवाकर
- इस प्रकार अनेक प्रयत्न करके भी वह प्रह्लादको न मार सका | भगवान् ने सर्वत्र
प्रहलाद की रक्षा की |
अन्त में हिरण्यकशिपु स्वयं प्रहलादको मारने के लिए | उद्यत हुआ | उसने पूछा--
कहाँ है तेरा भगवान् ?'
प्रह्लादजी बोले--`मेरे प्रभु तो सर्वत्र हैं |'
असुर ने क्रोध में पूछा -`इस खंभेमें भी है ?'
प्रह्लादके `हाँ' कहते ही उसने वज्रके समान घूँसा खम्भेपर मारा | खम्भा बीच से फट
गया | प्रलय के समान गर्जना करते हुए भगवान् अद्भुतरूपमें प्रकट हो गये | उनका मुख
सिंह के समान था और शेष शरीर मनुष्यके समान | नृसिंहभगवान ने हिरण्यकशिपुको पकड़
लिया | संध्याके समय, द्वारकी चौखटपर ले जाकर अपनी जाँघोंपर पटककर नखोंसे ही
भगवान् ने उस असुरका पेट फाड़कर उसे मार दिया |

National Record 2012

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Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217