सूरदास
परिशिष्ट
पदों में आये मुख्य कथा-प्रसंग
रामावतार
त्रेतामें देवताओं तथा ब्रह्माजी की प्रार्थना से पृथ्वीका भार दूर करने के लिए
भगवान् ने अयोध्या में महाराज दशरथके यहाँ अपने अंशोंके साथ अवतार लिया |
महाराज दशरथकी तीन रानियाँ थीं--कौसल्या, कैकेयी और सुमित्रा | इनमें
कौसल्याजीके पुत्ररूपमें भगवान् श्रीराम स्वयं प्रकट हुए | कैकेयीजी के पुत्र भरत
और सुमित्रासे लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
ज्यों ही ये कुमार बड़े हुए, त्योंही महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आये | मारीच-
सुबाहु राक्षस गंदी वस्तुओंकी वर्षा करके उनका यज्ञ बार-बार भ्रष्ट कर देते थे
ऋषिके आग्रह पर महाराज दशरथने राम-लक्ष्मण को उनके साथ कर दिया | मार्गमें ताड़का
नामक राक्षसीने उनपर आक्रमण किया | उसे श्रीरामने एक ही बाणसे मारकर मुक्त कर
दिया | महर्षिके आश्रमपर पहुँचकर दोनों भाई यज्ञ की रक्षा करने लगे |
जब राक्षसोंने आक्रमण किया, तब श्रीरामने सुबाहुको मार दिया और मारीचको बाण मारकर
सौ योजन दूर समुद्र-किनारे फेंक दिया |लक्ष्मण ने पूरी राक्षस-सेनाको नष्ट कर दिया|
यज्ञ पूरा होनेपर महर्षि विश्वामित्र दोनों भाइयोंको लेकर जनकपुर चले; क्योंकि वहाँ
महाराज जनक की कन्या श्रीसीताजीके विवाहके लिये स्वयंबर होनेवाला था | जो जनक जी
के यहाँ रखे शंकरजीके भारी धनुषको उठा लेता, उसीके साथ जानकीजीका विवाह होता |
मार्गमें महर्षि गौतमके शापसे पत्थरकी मूर्ति बनी पड़ी उनकी पत्नी अहल्या मिली |
विश्वामित्रजीके कहनेसे श्रीरामने अपने चरणोंसे उसे छू दिया | उनकी चरणधूलि पड़ते
ही अहल्याका पाप शाप नष्ट हो गया | वह देवीके रूपमें प्रकट होकर अपने पतिके
लोकको चली गयी | जनकपुर पहुँचने पर जब कोई नरेश शंकरजी के पिनाक नामक
धनुष को नहीं उठा सका, तब अन्तमें महर्षिकी आज्ञासे श्रीराम उठे | उन्होंने उस पिता
को उठाकर उसपर डोरी चढ़ायी और खींचकर धनुषको तोड़ दिया | पीछे शंकरजीका
धनुष टूटनेका समाचार पाकर वहाँ परशुरामजी क्रोधमें भरे आये | किंतु श्रीरामका
प्रताप देखकर उन्हें अपना धनुष देकर लौट गये | जनकजी ने अयोध्या दूत भेजा |
महाराज दशरथ बारात सजाकर आये | श्रीरामजीका विवाह तो सीताजीसे हुआ ही, उनके
तीनों भाइयों का विवाह भी वहीं जनकजी तथा उनके भाईकी दूसरी पुत्रियों से हो गया |
अयोध्या लौटनेपर कुछ दिन आनन्दसे बीते | महाराज दशरथने श्रीरामको युवराज-पद देना
चाहा | उसी समय देवताओंकी प्रेरणासे रानी कैकेयीकी बुद्धिमें भेद पड़ गया |
उन्होंने महाराज दशरथसे वचन लेकर भरतके लिये राज्य और श्रीरामके लिये चौदह वर्ष
का वनवास माँगा | पिताके वचनोंकी रक्षाके लिये श्रीजानकी तथा भाई लक्षमणजी के
साथ श्रीराम वन चले गये | उनका वियोग न सह सकनेके कारण महाराज दशरथका परलोक
वास हो गया | भरतजीने चित्रकूट जाकर श्रीरामको लौटानेका प्रयत्न किया; किंतु
श्रीराम उन्हें समझा बुझाकर लौटा दिया |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217