गोकुल प्रगट भए हरि आइ |
अमर-उधारन असुर-संहारन, अंतरजामी त्रिभुवन राइ ||
माथैं धरि बसुदेव जु ल्याए, नंद-महर-घर गए पहुँचाइ |
जागी महरि, पुत्र-मुख देख्यौ, पुलकि अंग उर मैं न समाइ ||
गदगद कंठ, बोलि नहिं आवै, हरषवंत ह्वै नंद बुलाइ |
आवहु कंत,देव परसन भए, पुत्र भयौ, मुख देखौ धाइ ||
दौरि नंद गए, सुत-मुख देख्यौ, सो सुख मापै बरनि न जाइ |
सूरदास पहिलैं ही माँग्यौ, दूध पियावन जसुमति माइ ||
भावार्थ :--
देवताओं का उद्धार करने के लिए और असुरों का संहार करने के लिये ये अन्तर्यामी
त्रिभुवननाथ श्रीहरि गोकुल में आकर प्रकट हुए हैं | श्रीवसुदेवजी इन्हें मस्तक पर
रखकर ले आये और व्रजराज श्रीनन्द जी के घर पहुँचा गये |
माता यशोदाजी ने जाग्रत होने पर जब पुत्र का मुख देखा, तब उनका अंग-अंग पुलकित हो
गया, हृदय में आनंद समाता नहीं था, कंठ गद्गद हो उठा, बोलातक नहीं जाता था, अत्यन्त
हर्षित होकर उन्होंने श्रीनन्दजी को बुलवाया कि स्वामी! पधारो | देवता प्रसन्न हो
गये हैं, आपके पुत्र हुआ है, शीघ्र आकर उसका मुख देखो | श्रीनन्दरायजी दौड़कर
पहुँचे, पुत्र का मुख देखकर उन्हें जो आनन्द हुआ, वह मुझसे वर्णन नहीं किया जाता
है | सूरदासजी कहते हैं कि माता यशोदा ! मैंने पहले ही (धायके रूप में) दूध पिलाने
की न्यौछावर माँगी है |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217