राग बिलावल
हरि मुख देखि हो बसुदेव |
कोटि-काल-स्वरूप सुंदर, कोउ न जानत भेव ||
चारि भुज जिहिं चारि आयुध, निरखि कै न पत्याउ |
अजहुँ मन परतीति नाहीं नंद-घर लै जाउ ||
स्वान सूते, पहरुवा सब, नींद उपजी गेह |
निसि अँधेरी, बीजु चमकै, सघन बरषै मेह ||
बंदि बेरी सबै छूटी, खुले बज्र -कपाट |
सीस धरि श्रीकृष्ण लीने, चले गोकुल-बाट ||
सिंह आगैं, सेष पाछैं, नदी भई भरिपूरि |
नासिका लौं नीर बाढ़यौ, पार पैलो दूरि ||
सीस तैं हुंकार कीनी, जमुन जान्यौ भेव |
चरन परसत थाह दीन्हीं, पार गए बसुदेव ||
महरि-ढिग उन जाइ राखे, अमर अति आनंद |
सूरदास बिलास ब्रज-हित, प्रगटे आनँद-कंद ||
श्रीवसुदेवजी ! श्रीहरि का मुख तो देखो ! ये परम सुन्दर होने पर भी करोड़ों कालके
समान हैं, इनका रहस्य कोई नहीं जानता | इनकी ये चारों भुजाएँ जिनमें (शंख, चक्र,
गदा, पद्म) चार आयुध हैं, देखकर भी आप विश्वास नहीं करते ? अबतक भी आपके
मनमें( इनके द्वारा कंस के मारे जाने का) विश्वास नहीं है, अतः इन्हें नन्दजी के घर
ले जाइये | कुत्ते सो गये हैं और बादल बड़े जोरकी वर्षा कर रहे हैं | बंदी वसुदेवजी
की सब बेड़ियाँ (स्वतः) खुल गयीं, लोहे के भारी किवाड़ भी खुल गये, मस्तक पर
श्रीकृष्णचन्द्र को उठाकर वे गोकुल के मार्ग पर चल पड़े | आगे सिंह दहाड़ रहा था,
पीछे-पीछे शेषनाग चल रहे थे,यमुनामें पूरी बाढ़ आयी थी, अभी दूसरा किनारा बहुत
दूर था कि जल नासिकातक आ गया | लेकिन श्याम ने सिरपर से हुंकार की, यमुना
ने संकेत के मर्म को समझ लिया, प्रभु के चरणों का स्पर्श करके उन्होंने थाह दे दिया
(पार जाने-जितना जल कर दिया) इससे श्रीवसुदेवजी पार चले गये | उन्होंने
श्री नन्दरानी के पास ले जाकर श्रीकृष्ण को रख दिया, इससे देवताओं को बड़ा आनन्द
हुआ | सूरदासजी कहते हैं कि ये आनन्दकन्द तो व्रजक्रीड़ा करने के लिये ही प्रकट
हुए हैं |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217