परिशिष्ट (ख) अंतर्कथाएँ
दावागिनि
दावाग्नि वह अग्नि जो वन में अपने आप प्रगट हो जाती है | यहाँ कृष्ण-लीला में
वर्णित वह दावानल जिसे ब्रजवासियों के रक्षार्थ श्रीकृष्ण पी गए थे | `भागवत' में
दावानल-पान की लीला दो बार वर्णित है - एक, जब कालिय दमन के बाद सब ब्रजवासी रात
में यमुना के तट पर ही सो रहे थे, तब आधी रात को दावानल को प्रगट होने पर कृष्ण ने
उसका पान करके भयातुर ब्रजवासियों को आश्वस्त किया था तथा दूसरी बार गोचारण के समय
उसी प्रकार उन्होंने गोप सखाओं की रक्षा की थी |
दुरवासा
एक क्रोधी स्वभाव के ऋषि, जिन्हें राजा अम्बरीष ने एकादशी-पारण पर भोजन करने के लिए
निमंत्रित किया था, परन्तु पारण का समय निकल जाने के डर से ऋषि को भोजन कराने के
पहले ही भोजन करके उन्हें कुपित कर दिया था |
दुस्सासन
दुर्योधन का छोटा भाई, जिसने पांडवों के जुए में हार जाने पर भरी सभा में द्रोपदी
के वस्त्र खींचे थे |
द्रुपदसुता
पंजाब के राजा द्रुपद की पुत्री कृष्णा जो पाँचौ पांडवों की पत्नी थी और जिसे पांडव
कौरवों के साथ जुए में हार गए थे | दुःशासन ने सबके सामने उसको बलात नग्न करने का
प्रयत्न किया | परन्तु संकट में द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को स्मरण किया | श्रीकृष्ण
योगमाया से उसका वस्त्र इतना बढ़ाते गए कि दुःशासन उसे खींचते खींचते हार गया |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217