बालकाण्ड
बालकाण्ड पेज 91
सबु समाजु एहि भाँति बनाई। जनक अवधपुर दीन्ह पठाई।।
चलिहि बरात सुनत सब रानीं। बिकल मीनगन जनु लघु पानीं।।
पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं। देइ असीस सिखावनु देहीं।।
होएहु संतत पियहि पिआरी। चिरु अहिबात असीस हमारी।।
सासु ससुर गुर सेवा करेहू। पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू।।
अति सनेह बस सखीं सयानी। नारि धरम सिखवहिं मृदु बानी।।
सादर सकल कुअँरि समुझाई। रानिन्ह बार बार उर लाई।।
बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं। कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं।।
दो0-तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु।
चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन हेतु।।334।।
चारिअ भाइ सुभायँ सुहाए। नगर नारि नर देखन धाए।।
कोउ कह चलन चहत हहिं आजू। कीन्ह बिदेह बिदा कर साजू।।
लेहु नयन भरि रूप निहारी। प्रिय पाहुने भूप सुत चारी।।
को जानै केहि सुकृत सयानी। नयन अतिथि कीन्हे बिधि आनी।।
मरनसीलु जिमि पाव पिऊषा। सुरतरु लहै जनम कर भूखा।।
पाव नारकी हरिपदु जैसें। इन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे।।
निरखि राम सोभा उर धरहू। निज मन फनि मूरति मनि करहू।।
एहि बिधि सबहि नयन फलु देता। गए कुअँर सब राज निकेता।।
दो0-रूप सिंधु सब बंधु लखि हरषि उठा रनिवासु।
करहि निछावरि आरती महा मुदित मन सासु।।335।।
देखि राम छबि अति अनुरागीं। प्रेमबिबस पुनि पुनि पद लागीं।।
रही न लाज प्रीति उर छाई। सहज सनेहु बरनि किमि जाई।।
भाइन्ह सहित उबटि अन्हवाए। छरस असन अति हेतु जेवाँए।।
बोले रामु सुअवसरु जानी। सील सनेह सकुचमय बानी।।
राउ अवधपुर चहत सिधाए। बिदा होन हम इहाँ पठाए।।
मातु मुदित मन आयसु देहू। बालक जानि करब नित नेहू।।
सुनत बचन बिलखेउ रनिवासू। बोलि न सकहिं प्रेमबस सासू।।
हृदयँ लगाइ कुअँरि सब लीन्ही। पतिन्ह सौंपि बिनती अति कीन्ही।।
छं0-करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै।
बलि जाँउ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै।।
परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी।
तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि मानिबी।।
सो0-तुम्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भावप्रिय।
जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन।।336।।
अस कहि रही चरन गहि रानी। प्रेम पंक जनु गिरा समानी।।
सुनि सनेहसानी बर बानी। बहुबिधि राम सासु सनमानी।।
राम बिदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी।।
पाइ असीस बहुरि सिरु नाई। भाइन्ह सहित चले रघुराई।।
मंजु मधुर मूरति उर आनी। भई सनेह सिथिल सब रानी।।
पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी। बार बार भेटहिं महतारीं।।
पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी। बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी।।
पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई। बाल बच्छ जिमि धेनु लवाई।।
दो0-प्रेमबिबस नर नारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु।
मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ निवासु।।337।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217