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ताबूतसाज आद्रियान प्रोखोरोव के घरेलू सामान की आखिरी चीजें भी गाड़ी पर लद गयीं मे जुते मरियल घोड़ों की जोड़ी ने चौथी बार सस्मान्नाया गली से निकीत्स्काया गली तक का चक्कर लगाया, जहां ताबूतसाज अपने समूचे घरबार के साथ जा बसा था। दुकान में ताला डालकर उसने दरवाजे पर एक तख्ती लगा दी कि यह घर बिक्री या किराये के लिए खाली है और अपने नये निवास-स्थान की ओर पैदल ही चल पड़ा। लेकिन जब वह उस नये पीले घर के निकट पहुंचा, जिसे खरीदने के लिए कितनी मुद्दत से उसके मन में चाह थी, और जिसे अब वह खासी रकम देकर खरीद पाया था, तो वह यह जानकर हैरान रह गया कि अब उसके दिल में कोई उमंग या खुशी नहीं है। अनजानी दहलीज लांघकर नयी जगह में पांव रखते समय जहां अभी तक सबकुछ अतव्यस्त और उल्टा-पलटा था, उसके मुंह से उस जर्जर दरबे के लिए एक आह निकल गयी, जिसे छोड़कर वह आया था। अठारह साल उसने वहां बिताये थे और व्यवस्था इतनी सख्त थी कि एक सींक भी इधर-से-उधर नहीं हो सकती थी। उसने अपनी दोनों लड़कियों और घर की नौकरानी को सुस्त कहकर डाटा और खुद भी उनका हाथ बंटाने में जुट गया। जल्द ही घर करीने से सज गया—देवमूर्ति का स्थान, चीनी के बरतनों की अलमारी, मेज, सोफे और पलंग—ये सब पिछले कमरे के विभिन्न कोनों में अपनी-अपनी जगह पर जमा दिये गए। घर के मालिक का समान, हर रंग और माप के ताबूत, मातमी लबादों-टोपियों और मशालों से भरी अलमारियां, रसोई और बैठक में जंचा दी गईं।बाहर दरवाजे के के ऊपर एक साइन बोर्ड लटका दिया गया, जिस पर उल्टी मशाल हाथ में लिए हृष्ट-पुष्ट आमूर1 की तस्बीर बनी थी और उसके नीचे लिखा था-"सादे और रंगीन ताबूत यहां बेचे और तैयार किये जाते हैं, किराये पर दिये जाते हैं और पुराने ताबूतों की मरम्मत भी की जाती है।" उसकी लड़कियां अपने कमरे में आराम करने चली गयीं और आद्रियान ने अपनी नयी जगह का मुआयना करने के बाद खिड़करी के पास बैठते हुए समोवार गर्म करने का आदेश दिया।
ताबूत साज का स्भाव उसके धंधे के साथ पूर्णतया मेल खाता था। आद्रियान प्रोखोरोव खामोश औ मुहर्रमी सूरत वाला आदमी था। वह बिरले ही अपनी खामोशी तोड़ता था, और सो भी उस समय, जब वह अपनी लड़कियों को निठल्लों की भांति खिड़कर से बाहर झांकते और राह चलतों पर नजर डालते देखता, या उस समय जब वह अपने हाथ की बनी चीजों के लिए उन अभागों से (या भाग्यशालियों से, मौके के अनुसार जैसा भी हो) कसकर दाम मांगता था,जिन्हें उन चीजों की जरूरत आ पड़ती थी। सो आद्रियान चाय का सांतवा खयालों में डूबा हुआ था।
यकाएक किसी ने बाहर के दरवाजे को तीन बार खटखटाया। ताबूतसाज के विचारों का तांता टूट गया। वह चौंककर चिल्लाया, "कौन है? तभी दरवाजा खुला और एक आदमी शक्ल-सूरतह से जिसे तुरन्त पहचाना जा सकता था कि यह कोई जर्मन दस्तकार है, भीतर कमरे मे चला आया और ताबूतसाज के निकट आकर प्रसन्न मुद्रा में खड़ा हो गया। "मुझे माफ करना, पड़ोसी महोदय," टूटी-फूटी रूसी भाषा में उसने कुछ इतने अटपटे अंदाज से बोलना शुरू किया कि उस पर आज भी हम अपनी हंसी नहीं रोक पाते हैं। "मुझे माफ करना, अगर मेरे आने से आपको काम में कोई बाधा हुई हो, लेकिन आपसे जान-पहचान करने के लिए मैं बड़ा उत्सुक हूं। मैं मोची हूं। गात्तिलब शूल्त्स मेरा नाम है। सड़क के उस पार ठीक सामने वाले उस छोटे-से घर में रहता हूं, जिसे आप अपनी खिड़की से देख सकते हैं। कल मै अपने विवाह की रजत जयंती मना रहा हूं और मैं आपको तथा आपकी लड़कियों को आमंत्रित करता हूं कि मेरे यहां आयें और प्रीति-भोज में शामिल हों।"
ताबूतसाज ने सिर झुका कर निमंत्रण स्वीकार कर लिया और मोची से बैठने तथा चाय पीने का अनुरोध किया। मोची बैठ गया। वह कुछ इतने खुले दिल का था कि शिघ्र ही दोनों अत्यंत घुल-मिलकर बातें करने लगे।,
"कहिये, आपके धंधे का क्या हाल-चाल है।" आद्रियान ने पूछा।
शूल्त्स ने जवाब दिया, कभी अच्छा, कभी बुरा, सब चलता है। यह बात जरूर है कि मेरा माल आपसे भिन्न है। जो जीवित हैं, वे बिना जूतों के भी रह सकते हैं, लेकिन मरने के बाद तो ताबूत के बिना काम चल नहीं सकता!"
"बिल्कुल ठीक कहते हो," आद्रियान ने सहमति प्रकट की, "लेकिन एक बात है। माना कि अगर जीवित आदमी के पास पैसा नहीं है, तो वह बिना जूतों के रह जाये और तुम्हें टाल जाये; लेकिन मृत भिखारी के साथ ऐसी बात नहीं। बिना कुछ खर्च किये ही वह ताबूत पा जाता है।"इस तरह बातचीत का यह सिलसिला कुद देर और चलता रहा। आखिर मोची उठा और अपने निमंत्रण को एक बार फिर दोहराते हुए उसने ताबूतसाज से विदा ली।
अगले दिन, ठीक दोपहर के समय, ताबूतसाज और उसकी लड़कियां नये खरीदे हुए घर के दरवाजे से बाहर निकले और अपने पड़ोसी से मिलने चल दिए।
मोची का छोटा-सा कमरा अतिथियों से भरा था।उनमें अधिकाशं जमर्न दस्तकार, उनकी पत्नियां और ऐसे युवक मौजूद थे, जो उनकी शागिर्दी कर रहे थे। रूसी सरकारी कारिन्दों में से केवल एक ही वहां मौजूद था—पुलिस का सिपाही यूर्को। जाति का वह चूखोन था और बावजूद इसके कि उसका पद निम्न स्तर का था, मेजबान उसकी आवभगत में खास तौर से जुटा था। पच्चीस साल से पूरी फरमाबरदारी के साथ वह अपनी नौकरी बजा रहा था।१८१२ के अग्निकाण्ड ने प्राचीन राजधानी को ध्वस्त करने के साथ-साथ उसकी पीली संतरी-चौकी को भी खाक में मिला दिया था। लकिन दुश्मन क दुम दबाकर भागते ही उसकी जगह पर एक नयी संतरी-चौकी का उदय हो गया—सलेटी रंग की और सफेद यूनानी ढंग के पायों से अलंकृत, और सिर से पांव से लैस यूर्को उसके सामने अब फिर, पहले की ही भांति, इधर-से-उधर गश्त लगाने लगा। निकीत्स्की दरवाजे के इर्द-गिर्द बसे सभी जर्मनों से वह परिचित था और उनमें से कुछ तो ऐसे थे, जो इतवार की रात उसकी संतरी-चौकी में ही काट देते थे। आद्रियान भी उससे जान-पहचान करने में पीछे नहीं रहा और जब अतिथियों ने मेज पर बैठना शुरू किया, तो ये दोनों एक-दूसरे के साथ बैठे। शूल्त्स, उसकी पत्नी और उनकी सत्रह-वर्षीय लड़की लोत्खेन अपने अथितियों के साथ भोजन में शामिल होते हुए भी परोसन और रकाबियों में चीजें रखने में बावर्ची की मदद दे रही थीं। बीयर खुलकर बह रही थी। यूर्को अकेले ही चार के बराबर खा-पी रहा था। आद्रियान भी किसी से पीछे नहीं था। उसकी लड़कियां बड़े सलीके से बैठी थीं। बातचीत का सिलसिला, जो जर्मन भाषा में चला रहा था, हर घड़ी जोर पकड़ रहा था। सहसा मेजबान ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और कोलतार पुती एक बोतल का कार्क खोलते हुए रूसी भाषा में जोरो से चिल्लाकर कहा, "नेकदिल लूईजा की सेहत का जाम?"काग के निकलते ही तरल शैम्पने का फेन उड़ने लगा। मेजबान ने अपनी अधेड़ जीवन-संगिनी का ताजा रंगतदार चेहरा चूमा और अतिथियों ने हल्ले-गुल्ले के साथ नेक लुईजा के स्वसथ्य की जाम पिया। इसके बाद एक दूसरी बोतल का काग खोलते हुए मेजबान चिल्लाया, "प्यारे अतिथियों के स्वास्थ्य का जाम!" और अतिथियों ने बदले में धन्यवाद देते हुए फिर गिलास खाली कर दिये। इसके बाद स्वास्थ्यकामना के लिए गिलास खनकाने और खाली करने का जैसे तांता बंध गया। जितने अतिथि थे, एक-एक करके उन सबकी सेहत के जाम पिये गए, फिर मास्को और करीब एक दर्जन छोटे-मोटे जर्मन नगरों के नाम पर गिलास खनके, फिर सब धंधों के नाम पर एक साथ और उसके उसके बाद अलग-अलग करके, गिलास खाली हुए और इन धंधों में काम करने वालों कारीगरों तथा सभी नये शगिर्दो के स्वास्थ्य के नाम बोतलों के काग खुले। आद्रियान ने इतनी अधिक पी कि उस पर भी ऐसा रंग सवार हुआ कि उसने सचमुच एक अनूठे से जाम का प्रस्ताव किया। अचानक एक हट्टे-कट्टे अतितथि ने, जो डबलरोटी-बिस्कुट बनाने का काम करता था,अपना गिलास उठाते हुए चिल्लाकर कहा,"उन लोगों के स्वास्थ्य केलिए, जिनकी खातिर हम काम करते हैं।" इस कामना का भी पहले की भांति सभी ने खुशी से स्वागत किया। अतिथि एक-दूसरे के सामने झुक-झुककर गिलास खाली करने लगे—दर्जी मोची के सामने,मोची दर्जी के सामने, नानबाई इन दोनों के सामने, और सभी अतिथि एक साथ मिलकर नानबाई के सामने। एक-दूसरे के सामने झुककर पारस्परिक अभिवादन का यह सिलसिला अभी चल ही रहा था कि यूर्को ने ताबूतसाज की ओर मुंह करते हुए चिल्लाकर कहा, "आइये, पड़ोसी, आके मृत आसामियों के स्वास्थ्य का जाम पियें।" इस पर सभी हंस पड़े, केवल ताबूतसाज चुप रहा। उसे यह बुरा लगा और उसकी भौंहें चढ़ गयी। लेकिन इधर किसी का ध्यान नहीं गया, अतिथियों का दौर चलता रहा और जब वे मेज से उठे,तो उस समय रात की आखिरी प्रार्थना के लिए गिरजे की घंटियां बज रही थीं।
काफी रात ढल जाने पर अतिथि विदा हुए। अधिकांश नशे में धुत्त थे। हट्टा-कट्टा नानबाई और जिल्दसाज, पुलिस के सिपाही की दोनों बगलों में अपने हाथ डाले, उसे उसकी चौकी की ओर ले चले। ताबुतसाज भी अपने घर लौट आया था। वह गुस्से से भरा था और उसका दिमाग अस्त व्यस्त-सा हो रहा था।"आखिर," उसने सस्वर सोचा, "मेरा धंधा क्या अन्य धंधों सो कम सम्मानपूर्ण है? ताबूतसाज और जल्लाद क्या भाई-भाई हैं? क्या उन्हें एक साथ रखा जा सकता है? तो फिर इन विदेशियों के हंसने में क्या तुक थीं? वे क्यों हंसे? क्या वे ताबूतसाज को रंगबिरंगे कपड़ों वाला विदूषकह समझते हैं? फिर मजा यह कि मैं इन सबको गृह-प्रवेश के प्रीतिभोज में बुलाने जा रहा था। ओह नहीं, मैं ऐसी बेवकूफी नहीं करूंगा। मैं उन्हें ही बुलाऊंगा, जिनके लिए मैं काम करता हूं—अपने ईसाई मृतकों को!"
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217