Home Page

States of India

Hindi Literature

Religion in India

Articles

Art and Culture

 

अलेक्सान्द्र पुश्किन अनु० नरोत्तम नागर

अलेक्सान्द्र पुश्किन अनु० नरोत्तम नागर

पेज 1

पेज 2

पेज 2

"ओह, मालिक!" नौकरानी ने, जो उस समय ताबूतसाज के पांव से जूते उतार रही थी, कहा, "जरा सोचिये तो सही कि यह आप क्या कर रहे हैं! सलीब का चिह्न बनाइये,कहीं मृतकों को भी गृह प्रवेश के लिए बुलाया जाता है? कितनी भयानक बात है यह!"

"ईश्वर साक्षी है, यह मैं जरूर करूंगा," आद्रियान ने कहना जारी रखा, "और कल ही।ऐ मेरे आसामियों, मेरे सुभचिंतकों, ककल रात भोज में शामिल होकर मुझे सम्मानित करना। जो कुछ रूखा-सूखा मेरे पास है, सब तुम्हारा ही दिया हुआ तो है।"

इन शब्दों के साथ ताबूतसाज ने बिस्तार ने बिस्तर की शरण ली और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा।

सुबह जब आद्रियान की आंखें खुलीं, तो उस समय काफी अंधेरा था। सौदागर की विधवा त्रूखिना रात में ही मर गयी थी और उसके  कारिन्दे द्वारा भेजे गये एक आदमी ने आकर इसकी खबर दी थी। वह घोड़े पर सवार तेजी से उसे दौड़ता आया था। ताबूतसाज ने वोदका के लिए दस कोपेक उसे इनाम में दिये, झटपट कपड़े पहने, एक गाड़ी पकड़ी और उस पर सवार होकर राज्गुल्याई पहुंचा। मृतक के घर के दरवाजे पर पुलिस वाले पहले से तैनात थे और सौदागर इधर-से-उधर इस तरह मंडरा रहे थे, जैसे सड़ी लाश की गंध पाकर कौवे मंडराते हैं। शव मेज पर रखा था, चेहरा मोमियाई मालूम होता था, लेकिन नाक-नक्श अभी बिगड़ा नहीं था। सगे-संबंधी, अड़ोसी-पड़ोसी और नौकर-चाकर उसके चारों ओर खड़े थे। खिड़कियां सभी खुलीं थीं, मोमबत्तियां जल रही थीं  और पादरी मृतक स्त्री के भतीजे के पास पहुंचा। वह युवक सौदागर था और फैशनदार कोट पहने था। आद्रियान ने उसे सूचना दी कि ताबूत, मोमबत्तियां, ताबूत ढंकने का कफन और अन्य मातमी साज-सम्मान बहुत ही बढ़िया हालत में तुरत जुटाये जायेंगे। योंही, लापरवाही से, मृतक के उत्तराधिकारी ने उसे धन्यवाद दिया और कहा कि दामों के सवाल पर वह झिकझिक नहीं करेगा और सबकुछ खुद ताबूतसाज के इमान और नेकनीयती पर पूर्णयतया छोड़ देगा। ताबूतसाज ने अपनी आदत के अनुसार शपथ लेकर कहा कि वह एक पाई भी ज्यादा वसूल नहीं करेगा और इसके बाद कारिन्दे ने उसकी ओर और उसने कारिन्दे की भेद-भरी नजर से देखा, और सामान तैयार करने के लिए गाड़ी पर सवार होकर घर लौट आया। दिन-भर वह इसी तरह राज्यगुलाई और निकीत्स्की दरवाजे के बीच भाग-दौड़ करता रहा। कभी जाता, कभी वापस लौटता। शाम तक उसने सभी कुछ ठीक-ठाक कर दिया और गाड़ी को विदा कर पैदल ही घर लौटा। चांदनी चात थी। सही-सलामत वह निकीत्स्की दरवाजे पहुंच गया। गिरजे के पास से गुजाते समय हमारे मित्र यूर्को ने उसे ललकारा, लेकिन जब देखा कि अपना ही ताबूतसाज है, तो उसका अभिवादन किया। देर काफी हो गयी थी। जब वह अपने घर के पहुंचा, तो यकायक उसे ऐसा लगा, मानो कोई दरवाजे के पास रुक गया है, और दरवाजे को खोलकर अन्दर जाकर गायब हो गया है। "यह क्या तमाशा है?"आद्रियान अचरज से भर उठा, "इस समय भला कौन मुझसे मिलने आ सकता है? कहीं कोई चोर तो नहीं है?  कहीं ऐसा तो नहीं कि  कोई सैलानी युवक है, जो रात को मेरी नन्हीं निठल्ली लड़कियों से साठं-गाठं करने आया हो?" एक बार तो उसने यहां तक सोच कि अपने मित्र यूर्को को मदद के लिए बुला लाये। तभी एक और व्यक्ति दरवाजे के पास पहुंचा और भीतर पांव रख ही रहा था कि ताबूतसाज को घर की ओर तेजी से लपकते हुए देखकर वह निश्चल खड़ा हो गया और अपने तिरछे टोप  को उठाकर अभिवादन करने लगा।

आद्रियान को ऐसा लगा, जैसे उसने यह शक्ल कहीं देखी है, लेकिन जल्दी में उसे ध्यान से नहीं देख सका। हांफते हुए बोला, ‘‘क्या आप मुझसे मिलने आये हैं? चलिये, भीतर चलिये।’’

‘‘तकल्लुफ के फेर में न पड़ें, मित्र,’’ अनजान ने थोथी आवाज में कहा, ‘‘आगे-आगे आप चलिये और अपने हतिथियों का पथ-पदर्शन कीजिये!’’

आद्रियान को खुद इतनी उतावली थी कि चाहने पर भी वह तकल्लुफ निभा न पाता। उसने दरवाजा खोला और घर की सीढ़ियों पर पांव रखा। दूसरा भी उसके पीछे-पीछे चला। आद्रियान को ऐसा लगा कि उसके कमरों में लोग टहल रहे हैं। ‘‘हे भगवान, यह सब क्या तमाशा है!’’ उसने सोचा, और लपक कर भीतर पहुंचा। उसके पैर पड़खड़ा गये। कमरा प्रेतों से भरा था। खिड़की में से चांदनी भीतर पहुंच रही थी, जिसमें उनके पीले-नीले चेहरे, लटके हुए मुंह, धुंधली अधखुली आंखें और चपटी नाकें दिखाई दे रही थीं। आद्रियान ने भय से कांपकर पहचाना कि ये सब वही लोग हैं, जिनको दफ़नाने में उसने योग दिया था, और वह, जो उसके साथ भीतर आया था, वही ब्रिगेडियर था, जिसे मूसलाधार वर्षा के बीच दफनाया गया था। वे सब पुरुष और स्त्रियां भी, ताबूतसाज के चारों ओर इकट्ठे हो गये और सिर झुका-झुकाकर अभिवादन करने लगे। भागय का मारा केवल एक ही ऐसा था, जो कुछ दिन पहले मुफ्त दफनाया गया था, वहीं पास नहीं आया। बेबसी की मुद्रा बनाये वह सबसे अलग कमरे के एक कोने में खड़ा था, मानो अपने फटे हुए चिथड़ों को छिपाने का प्रयत्न कर रहा हो। उसके सिवा अन्य सभी बढ़िया कपड़े पहने थे,स्त्रियों के सिरों पर फीतेदार टोजियां थीं, स्वर्गवासी अफसर वर्दियां डाटे थे, लेकिन उनकी हजामतें बढ़ी थीं, सौदागरों ने एक-से-एक बढ़िया कपड़े छांट कर पहने थे। ‘‘देखो, प्रोखोरोव!’’ सबकी ओर से बोलते हुए ब्रिगेडियर ने कहा, ‘‘हम सब तुम्हारे निमंत्रण पर अपनी-अपनी कब्रों से उठकर आये हैं। केवल वे, जो एकदम असमर्थ हैं, जो पूरी तरह गल-सड़ चुके हैं, नहीं आ सके। इसके अलावा उन्हें भी मन मसोस कर रह जाना पड़ा, जो केवल हड्डियों का ढेर भर रह गये हैं और जिनका मांस पूरी तरह गल चुका है। लेकिन इनमें से भी एक अपनी आपको नहीं रोक सका। तुमसे मिलने के लिए वह इतना बेचैन था कि कुछ न पूछो।’’

उसी समय एक छोटा कंकाल कोहनियों से सबको धकेलता आगे निकल आया और आद्रियान की ओर बढ़ने लगा। उसका मांसहीन चेहरा आद्रियान की ओर बड़े चाव से देख रहा था। तेज हरे और लाल रंग की धज्जियां उसक ढांचे से जहां-तहां लटकी थीं जैसे बांस से लअका दी जाती हैं और उसके घुटने से नीचे की हड्डियां घुड़सवारी के ऊंचे जूतों के भीतर इस तरह खटखटा रही थीं, जैसे खरल में मूसली खटखटाती है।           ‘‘मुझे पहचाना नहीं, प्रोखोरोव?’’ कंकाल ने कहा, ‘‘गार्द के भूतपूर्व सार्जेंट प्योत्र पेत्रोचिव मुरील्किन को भूल गये, जिसके हाथ तुमने १७९९ में अपना पहला ताबूत बेचा था, वही जिसे सुमने बलूत का बताया था, लेकिन निकला वह चीड़ की खपच्चियों का!’’

 यह कहते हुए आद्रियान का आलिंगन करने के लिए कंकाली ने अपनी बांहें फैला दीं। अपनी समूची शक्ति बटोर कर आद्रियान चिल्लाया और कंकाल को उसने पीछे धकेल दिया। प्योत्र पेत्रोविच लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ा, बिखरी हुई हड्डियों का ढेर मात्र। मृतकों में विक्षोभ की एक लहर दौड़ गयी। अपने साथी के अपमान का बदला लेने के लिए वे आद्रियान की ओर लपके-चीखते-चिल्लाते, कोसते और धमकियां देते।

अभागे मेजबान के होश गुम थे। चीख-चिल्लाहट ने उसके कान बहरे कर दिये थे और वे उसे कुचल देना चहते थे। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और लड़खड़ा कर अब वह भी मृत सार्जेंट की हड्डियों के ढेर पर गिर पड़ा। वह बेसुध हो गया था।

  सूरज की किरणें उस बिस्तर पर पड़ रही थीं, जिस पर ताबूतसाज सो रहा था। आखिर उसने आंखे खोलीं और देखा कि नौकरानी समोवार में कोयले दहकाने के लिए फूंक मार ही है। रात की घटनाओं की याद आते ही आद्रियान के शरीर में कंपकंपी-सी दौड़ गयी। त्रूखिना, ब्रिगेडियर और सार्जेंट कुरील्किन के धुंधले चेहरे उसके दिमाग पर छाये हुए थें वह चुपचाप प्रतीक्षा करता रहा कि नौकरानी खुद बातचीत शुरु करेगी और रात की घटनाओं का बाकी हाल उसे बतायेगी।

 ‘‘मालिक, आज आप कितनी देर तक सोये,’’ सुबह के समय पहनने का चोंगा उसे थमाते हुए आक्सीन्या ने कहा, ‘‘हमारा पड़ोसी दर्जी आपसे मिलने आया था और पुलिस का सिपाही भी एक चक्कर लगा गया है। वह यह कहने आया था कि आज पुलिस इन्स्पेक्टर का जन्मदिन है। लेकिन आप सो रहे थे और हमने जगाना ठीक नहीं समझा।’’

 ‘‘अच्छा, स्वर्गवासी विधवा त्रूखिना के यहां से भी कोई आया था?’’

‘‘क्यों? क्या त्रूखिना मर गयी, मालिक?’’

‘‘तुम भी बस योंही हो! उसका मातमी-साज-सामान तैयार करने में कल तुम्हीं ने तो मेरा हाथ बंटाया था?’’

  ‘‘आप पागल तो नहीं हो गये, मालिक?’’ आक्सीन्या ने कहा, ‘‘या कल का नशा अभी तक दिमाग पर छाया हुआ है? कल किसी की मैयत का सामान तैयार नहीं हुआ। आप दिन-भर जर्मन के यहां दावत उड़ाते रहे। रात को नशे में धुत्त लौटे और अपने इसी बिसतर पर गिर पड़े, जिस पर कि आप अभी तक सोये हुए थे। प्रार्थना के लिए गिरजे की घंटी भी बजते-बजत आखिर थक कर चुप हो गयी।’’

‘‘सचमुच?’’ताबूतसाज ने संतोष की सांस लेते हुए कहा। ‘‘और नहीं तो क्या झूठ?’’ नौकरानी ने जवाब दिया। ‘‘तो फिर जलदी से चाय बनाओ और लड़कियों को यहीं बुला लाओ!’’

 

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217