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किरचें नरेन्द्र कोहली

किरचें नरेन्द्र कोहली

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तीन दिनों के झुटपुटे के बाद आज पहली बार सूर्य निकला था। बादल छंट गए थे और धूप बहुत भली लग रही थी।

लि थी खुऑंग की तबीयत दो-तीन दिनों से काफी खराब चल रही थी। सूर्य निकलने से उसको भी राहत मिली थी। पता नहीं, तबीयत ही कुछ सुधर गई थी या मौसम का ही प्रभाव था।

लि का पति सवेरे से ही बाहर गया हुआ था। मौसम के सुधरने की वजह से ही उसका बाहर जाना संभव हो पाया था।

 हो को बाहर भेजकर लि घर के छोटे-मोटे कामों में लग गई थी। वह चाहती थी कि दोपहर के लगभग जब हो लौटे तब तक वह सारे कामों से निबट चुकी हो, ताकि दोनों आज के इस सुनहरे दिन की छुट्टी को फुरसत से बिता पाएं।

वियतनाम के हा बाक प्रांत में, हीन-होआ नगर के बाहर इस बस्ती में, जुलाई के महीने में ऐसे सुनहरे दिन बहुत कम आया करते थे। और इन दिनों तो लि ऐसे दिनों के लिए तरसकर रह गई थी। पिछले कुछ दिनों से उसके मन में कुछ विशेष कामों के प्रति बहुत तीव्र उत्कंठा पैदा होने लगी थी। वह कुछ विशेष स्थानों पर जाना चाहती थी, विशेष तरह की चीजें खाना चाहती थी। लगभग दो वर्ष पहले इन्हीं दिनों जब लि पहली बार मां बनने की प्रतीक्षा कर रही थी, तो भी उसकी इच्छाएं कुछ इसी प्रकार तीव्र हो उठी थीं। पर वे इच्छाएं इन इच्छाओं से बहुत भिन्न थीं। तब लि मीठी चीजें बहुत खाया करती थी। पर इन दिनों उसे खट्टी चीजें बहुत भाती थीं। पहली बार लि को बेटा पैदा हुआ था- और लि अपने मन में जानती है कि इस बार उसकी गोद में बिटिया आने वाली है।

लि के मन में इन दिनों ममता बहुत उमडती है। उसे लगता है कि अब वह दो बच्चों की मां है। उसके भीतर दुगनी ममता है। पर अभी अपनी अनजाई बिटिया को वह प्यार नहीं कर पाती। बस, कभी-कभी एकांत पाकर अपने उभरे हुए पेट पर धीरे से हाथ फिरा लेती है। कभी-कभी अनदेखी-अनचीह्नी बेटी को पुकार लेती है और उससे बातें कर लेती है। जब भीतर ही भीतर बहुत हिल-डुल होती है, तो बच्ची को प्यार से इस शरारत के लिए डांट भी देती है, 'क्यों तंग करती है बिट्टो मेरी! वह उसे समझाती है, 'अभी से इतनी शैतान है तू, तो जन्म लेने के बाद क्या करेगी! न बेटी! मां को तंग नहीं करते!

और अपने आप ही मुस्करा पडती है लि। बाकी समय लि अपना सारा प्यार बेटे पर उडेलती रहती है।

आज सवेरे से लि अपने बेटे के कामों में लगी हुई है। कभी-कभी झुंझलाकर सोचती है- काम ही किसका है उसे? एक इस बेटे का और एक इसके बाप का। दोनों बाप-बेटे परेशान करते रहते हैं। नन्हा काई भी बहुत शैतान हो गया है। लि की कोई बात नहीं मानता।

धूप निकल आई थी, तो लि के मन में बेटे को नहला देने की बात भी आई। दो दिनों से बारिश हो रही थी और लि ने नन्हे काई को इस डर से नहीं नहलाया था कि बच्चे को कहीं ठंड न लग जाए। पर आज धूप निकल आई थी। आज उसे नहला ही देना चाहिए, बहुत गंदा हो रहा था। और फिर आज न नहलाया तो कल मौसम जाने कैसा रहे!

लि ने आंगन में नहलाने की चीजें इकट्ठी कर ली थीं और नन्हे काई को भी पकड लाई थी।

वह जोर-जोर से रोता जा रहा था। तीन दिनों से लि और हो ने उसे आंगन में निकलने नहीं दिया। इतनी देर तक कमरे में बंद रहने के बाद काई आंगन में निकला था, तो वह मिट्टी से खेलना चाहता था, इधर-उधर भाग-दौड करना चाहता था और घर के अहाते से भी बाहर निकल जाना चाहता था।

पहले तो लि के मन में आया कि बच्चे को थोडा-सा खेल लेने दे। पर यदि एक बार वह छूट गया तो उसका दुबारा हाथ आना मुश्किल हो जाएगा। फिर देर भी हो रही थी। इसी तरह काम चला तो हो के घर लौटने तक वह अपना काम समाप्त नहीं कर पाएगी...

'न बेटे ! रोते नहीं है। उसने काई को समझाया, 'और राजे बेटे ! मां को तंग नहीं करते!

काई रोता रहा और लि उसके कपडे उतारती रही। पहले कमीज उतारी। बनियान की बारी आई तो काई एकदम मचल गया। वह उसके हाथों से छूट-छूट जा रहा था। एक बार तो वह लगभग हाथों से निकल ही गया था, पर लि ने उसे फिर घसीट लिया।

एक हाथ से लि न काई को पकडा और दूसरे हाथ से पानी को छूकर देखा-पानी बहुत ठंडा नहीं था।

और तभी लि के भीतर बहुत जोर से कुछ हिलने-डुलने लगा।

लि ने गीला हाथ अपने पेट पर रख लिया, 'न बेटी, न ! तंग नहीं करते। भैया को नहला लेने दे।

एक ओर काई जोर-जोर से रो रहा था और उसके हाथों से निकल भागने को मचल रहा था और दूसरी ओर यह...

'तुम दोनों भाई-बहन तंग क्यों कर रहे हो मुझे! लि ने मुस्कुराकर अपने पेट के उभार की ओर देखा, 'शैतान बच्चो!
और वह सोच रही थी, इस समय हो घर पर होता तो उसकी सहायता कर देता।

उसके पेट के भीतर की हलचल बहुत प्रबल हो रही थी। बिट्टो अब और भीतर नहीं रहना चाहती- लि खुद को बता रही थी।

उसने अपना ध्यान उधर से हटाकर काई के सिर पर एक लोटा पानी डाला।

काई का रोना कुछ प्रबल हो गया।

 'न बेटे! नहाते हुए रोते नहीं हैं। लि ने उसे समझाया, 'जल्दी से नहा लो।

उसने उसके सिर पर साबुन की टिकिया रगडनी शुरू की। मुंह पर साबुन नहीं लगाया, नहीं तो काई और भी अधिक जोर से रोने लगता, मुंह पर साबुन बाद में लगा देगी। हाथों पर साबुन लगाया और मल-मलकर हाथों पर लगी मिट्टी उतारी।

काई की बहन एक बार फिर जोर से मचली थी। और सहसा बहुत जोर से 'गूँ-गूँ-ऊँ-ऊँ की आवाज हो उठी। लि चौंकी- क्या हुआ है बिट्टो को...?

पर दूसरे ही क्षण ध्यान आया, वह बिट्टो की आवाज नहीं थी। आवाज आसमान से आ ही थी।स आवाज की दिशा में बहुत सारा धुऑं और गर्द-गुबार उड रहा था। साफ आकाश कहीं छिप गया था। सारा वातावरण मटमैला हो गया था।

और इन सबके बीच पांच विमान उडे जा रहे थे।

लि को स्थिति समझने में क्षण-भर भी नहीं लगा। उसने साबुन के पुते नन्हे काई को झपटकर अपनी गोद में समेटा, एक हाथ अपने पेट पर रखकर काई की बहन को सांत्वना दी और झपटकर भीतर की ओर भागी...

नहाने का पानी, साबुन और तौलिया खुले आकाश के नीचे पडे थे।

चारों ओर शोर ही शोर था। आग और धुऑं। मानों मिट्टी धरती की कोख से उछलकर आकाश की ओर जाती थी और फिर आग के समान धरती पर बरस पडती थी। धमाके बहुत पास आ गए थे। लि को लगा, उसका घर धमाकों से घिर गया है। वह घर में अकेली थी और उसके पास दो बच्चे थे। दोनों एक से एक शैतान...

अचानक आंगन में जोर का धमाका हुआ। नहाने का सामान धुएं में छिप गया और लि कमरे के बीचोबीच औंधी गिरी। काई अब भी उसकी गोद में था।

लि के मुंह से जोर की चीख निकली। उसे लगा, कोई आग उसके बाएं नितंब को चीरकर भीतर घुसती चली गई है।

काई चुप हो गया था और उसके हाथों से छूटकर नंग-धडंग, साबुन और मिट्टी से सना हुआ उसके सामने बैठा था।

पीडा के मारे लि की ऑंखों में ऑंसू निकल आए। उसने अपने निचले होंठ को दांतों से भींच लिया। वह चाहती थी, दांत होंठ को चीरकर मांस में धंस जाएं। नितंब की पीडा से ध्यान हटाने के लिए वह अपने होंठ में दूसरा घाव करना चाह रही थी।

बाहर विमानों की आवाज दूर चली गई थी।

लि ने दाएं हाथ से अपने पेट को दबाया और बाएं से नितंब को टटोला। उसका हाथ नंगे नितंब पर पडा-कपडा वहां नहीं था- और हाथ किसी गर्म-गर्म चीज से गीला हो गया था।
उसने अपने हाथ को आंखों के सामने लाकर देखा- सारा हाथ खून से लाल हो गया था। लि ने पीडा से बचने के लिए अपने दांत फिर अपने होंठ में गडा दिए। हाथों-पैरों को समेटकर उठना चाहा और फिसलकर गिर पडी।

काई पास बैठा बहुत जोर-जोर से रो रहा था।

हो बस्ती की सीमा तक ही पहुंचा था कि विमानों की 'गूं-गूं-ऊं-ऊं से उसके कान खडे हो गए। यह अनुभव उसके या बस्ती के किसी अन्य व्यक्ति के लिए नया नहीं था। अब तो लोग इसके आदी हो गए थे। वर्षों से यह लडाई चल रही थी और जाने कब तक चलेगी?

हर दूसरे-तीसरे दिन इसी प्रकार विमान उडते हुए आते थे। उनसे बम गिराए जाते थे और फिर बस्ती के परे हीन-होआ नगर पर आग, धुआं तथा धूल ही धूल नजर आती थी।

पिछले तीन दिनों से वर्षा के कारण ही जहाज इधर नहीं आए थे। आज धूप निकली थी तो विमान भी आ निकले थे...

हो समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे? बस, एक ही बात उसके मन में थी। ऐसे समय में उसे अपने घर पर लि और काई के पास होना चाहिए था। वैसे आज तक उनकी बस्ती पर कभी कोई बम नहीं गिरा था- पर विमान इसी प्रकार आते रहे तो किसी भी दिन गिर सकता था...

और अचानक विमानों से बम गिरने आरंभ हुए। धमाके, आग और धुऑं सब ओर फैल गया। किसी ओर कुछ नजर नहीं आ रहा था। हो चुपचाप जमीन पर औंधा लेट गया।

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