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हो को समय का कुछ पता नहीं चला। कब विमान बम बरसाकर चले गए- वह नहीं जानता। उसके मन में एक ही प्रश्न था- लि और काई ठीक तो हैं न?
और जैसे ही उसे यह एहसास हुआ कि विमान आकाश पर मँडरा नहीं रहे, हो उठकर भागा।
उसका हृदय धडक रहा था। आज पहली बार विमान उनकी बस्ती के ऐन ऊपर बम बरसाकर गए थे- ईश्वर भला करे!
छँटते हुए धुएँ में से हो भागा जा रहा था। अब धमाके नहीं हो रहे थे, पर शोर बहुत बढ गया था। हर घर से रोने की और चीखने की आवाजें आ रही थीं। स्थानीय स्वयंसेवक और सैनिक अधिकारी भी प्रकट हो गए थे। मोटर-गाडियाँ इधर-उधर भागती फिर रही थीं।
अपने घर पर दृष्टि पडते ही हो को लगा, उसके दिल की धडकन बंद हो जाएगी। उसके अपने घर के ऑंगन में बम गिरा था। हो ने जोर की एक चीख मारी और भागता हुआ घर के भीतर घुस गया। उसके गालों पर ऑंसू धारा प्रवाह बह रहे थे।
उसके सामने ललुहान लि औंधी पडी थी और उसके सिरहाने बैठा काई रो रहा था।
हो घुटनों के बल बैठ गया, 'लि! लि!
लि ने कोई उत्तर नहीं दिया।
बाप को देखकर काई और जोर से रो पडा।
हो ने विवशता से इधर-उधर देखा। आसपास कोई नहीं था। उसने लि को सीधा करने के लिए हाथ लगाया तो सहसा उसके शरीर के भीतर होती हुई उथल-पुथल को छू गया।
हो को समझ नहीं आ रह था, वह क्या करे?
और तभी एक अधिकारी कई स्वयं-सेवकों के साथ घर के भीतर आया। हो ऑंसुओं -भरी ऑंखों और बिसूरते होंठों से उन्हें चुपचाप देखता रहा।
अधिकारी एक ही नजर में सब कुछ समझ गया। उसने झुककर लि को सीधा कर उसकी हृदय गति देखी। और सहसा वह अपने साथियों की ओर मुडा, 'जीवित है।
स्वयं सेवक झूके और लि को उठाकर ले गए।
हो ने रोते हुए काई को गोद में उठाया और उनके पीछे-पीछे बाहर चला आया।
लि को उन्होंने एंबुलेंस में लिटाया। उसमें चार-पांच घायल और भी थे। हो साथ वाली जीप में बैठ गया। काई रोना बंद कर फटी-फटी ऑंखों से इधर-उधर देख रहा था।
सब कुछ अपने आप ही हो गया था। किसी ने भी किसी से कुछ नहीं कहा था।
पहले जीप चली और उसके पीछे-पीछे एंबुलेंस चल पडी। वे हीन-होआ नगर की ओर जा रहे थे।
हो के मस्तिष्क में एक ही बात थी। ये लोग लि को साधारण घायल के रूप में ही ले जा रहे थे या यह जानते थे कि उसके शरीर के भीतर एक और नन्ही-सी जान सूर्य की रोशनी को देखने के लिए कसमसा रही है? लि की इस अवस्था के कारण नन्ही-सी जान भी खतरे में थी।
हो ने कितनी ही बार सोचा कि वह उठकर अधिकारी को यह बता दे, पर वहाँ कोई भी किसी से नहीं बोल रहा था। और हो की अपनी अवस्था भी ऐसी हो रही थी कि उसे स्वयं ही इस बात में संदेह था कि उसके गले से आवाज भी निकलेगी क्या?
सूर्य ढल चुका था। गाडियाँ अस्पताल के अहाते में प्रवेश कर रही थीं और हो तब तक अधिकारी को कुछ नहीं बता पाया था।
हो बरामदे के एक कोने से दूसरे कोने तक टहल रहा था। वह रात-भर इसी प्रकार टहलता रहा और अब ऊषा की पहली किरणें धरती को छू रही थीं।
हो को पता भी नहीं चला कि रात किधर गई। वह तो यह जानता है कि डॉक्टर ने लि को सरसरी नजर से देखकर ऑपरेशन थिएटर में भेज दिया था। उसे इतना-भर बता दिया गया कि लि बम से छिटक आए हुए धातु के टुकडे से घायल हुई थी और धातु का टुकडा लि के बाएं नितंब के भीतर घुस गया था और अभी भी भीतर ही था। उसे ऑपरेशन करके निकाला जा सकता है। लि थिएटर के भीतर बंद थी और वह बाहर टहल रहा था।
काई एक बेंच पर सोया पडा था।
हो ने एक नजर काई को देखा। वह अपने घुटने पेट से लगाए गठरी बना सोया पडा था। हो के जी में आया कि उसे एक चादर ही ओढा दे। पर चादर कहाँ से लाता?
रात-भर हो टहलता रहा। और किसी ने भी उसे यह नहीं बताया था कि लि कैसी है। वह बचेगी भी या नहीं- वह नहीं जनता था। यदि लि नहीं बची तो?
'उसके मरने से पहले मुझे उससे थोडी बात कर लेने दो, वह कहना चाहता था, पर किससे कहता? यहाँ कौन था जो उसकी बात सुनता? जिस दरवाजे के भीतर उसकी लि को ले जाया गया था, उसके भीतर उसे जाने नहीं दिया गया था और स्वयं भीतर घुस जाने का साहस वह नहीं कर पाया था।
और तभी दरवाजा खुला था।
हो पलटकर खडा हो गया। उसकी सांस रुकने-सी लगी।
'मिस्टर हो, आप आ सकते हैं। खुले दरवाजे के बीच प्रकट हुई नर्स ने कहा।
नर्स उसे कई रास्तों से घुमाती हुई वार्ड में ले आई थी। घायलों के उस जंगल में उसने एक बेड पर लि को देखा।
जीती-जागती लि उसके सामने लेटी हुई थी। उसकी आंखों से आंसू टप-टप गिर रहे थे। हो को देखकर लि एक बार जोर से सुबकी और फिर उसी प्रकार शांत होकर रोती रही।
हो के सिर से मनों बोझ हट गया। उसके होंठों पर एक मुस्कान फैल गई, 'लि! रो क्यों रही हो?
वह आकर उसके सिरहाने के पास खडा हो गया। लि कुछ नहीं बोली। हो ने आश्चर्य से लि को देखा और फिर उसकी ऑंखें नर्स की ओर उठ गईं।
नर्स उसके पास आ गई थी। 'हमें खेद है, मिस्टर हो! हम आपकी बच्ची को नहीं बचा सके।
'बच्ची! और सहसा हो को ध्यान आया कि लि अपने शरीर में एक नन्ही-सी जान को भी पाल रही थी।
हो की ऑंखों में ऑंसू उतर आए।
'आप बच्ची को देखना चाहेंगे? नर्स उससे पूछ रही थी।
हो का सिर अपने आप ही स्वीकृति में हिल गया।
और फिर हो नर्स के पीछे-पीछे चलता हुआ बहुत सारे गलियारों को पार कर एक कमरे के सम्मुख आया।
नर्स उसे वहीं रुकने का इशारा कर स्वयं भीतर चली गई।
वह बंद दरवाजे को ताकता रहा। इस बंद दरवाजे के उस पार उसकी बच्ची थी, जो कल लि के शरीर का अंग थी।
दरवाजा खुला। नर्स के हाथों में सफेद कपडों में लिपटा एक बच्चा था। नर्स ने कपडे की तहें हटा दीं।
एक गोरा-चिट्टा, स्वस्थ बच्चा कपडे के बीच पडा था। उसके मुख पर रोने के-से भाव थे। शायद चीखती-चीखती ही उसकी बच्ची मर गई थी।
और नर्स ने बच्ची के सिर को एक ओर घुमाते हुए हो को बधाी का बायाँ गाल दिखाया। गाल पर एक बडा-सा ताजा-ताजा घाव था। चमडी फटी हुई थी और नंगा लाल मांस दिख रहा था। खून चारों ओर जमकर काला पड रहा था।
'यह बम के उस धातु के टुकडे से हुआ है, नर्स बोली, 'जो श्रीमती लि के नितंब में घुस गया था।
नर्स ने कपडे से बच्ची को ढँक दिया।
'हमें खेद है, मिस्टर हो! वह फिर बोली, 'हम आपकी बच्ची को बचा नहीं सके। पर इतनी कम आयु का घायल इससे पहले कभी हमारे पास आया भी तो नहीं था!
नर्स ने ऑंखें मीचकर अपनी ऑंखों में आए ऑंसू झटक दिए और दरवाजे के भीतर चली गई।
थोडी देर बाद हो लि के बेड के पास एक स्टूल पर बैठा था। काई उसकी गोद में था, जो आश्चर्य से कभी माँ को देखता, कभी बाप को। बोल कोई भी नहीं पा रहा था।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217