भावानुवाद - यशपाल जैन
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पूरे एक घंटे वह वहां खड़ा रहा, पर किसी ने उसे देखा तक नहीं। अंत में रोशनी में चमकते होटल के दरवाजे पर पेड़ के तने की तरह खड़े उस अजनबी आदमी पर एक बोझी की निगाह गई और वह मैनेजर को बुलाने चला गया। उस साइबेरियावार्स के चेहरे पर आंनद की लहर दौड़ गई, जब मैनेजर ने आकर प्यार से कहा:
"कहो, बोरिस, तुम्हें क्या चाहिए?"
"क्षमा... करिये" रूक-रूकक कर भगोड़े ने कहा, "मैं बस इतना जानना चाहता हूं। कि... आया मैं घर जा सकता हूं?"
"कल?"
मैनेजर गंभीर हो उठा। यह शब्द उसने इतनी दयनीयता मे साथ कहा था कि मैनेज की हंसी काफूर हो गई।
"नहीं बोरिस, अभी नहीं... जबतक युद्ध समाप्त न हो जाय तबतक नहीं।"
"कबतक? युद्ध कब समाप्त होगा?"
"भगवान जाने! कोई भी आदमी यह नहीं बात सकता।"
"क्या मुझे इतने दिन रुकना ही होगा? क्या मैं जल्दी नहीं जा सकता?"
"नहीं, बोरिस ।",
"क्या मेरा घर बहुत दूर है ?"
"हां।"
"कई दिन का सफर है?"
"हां, बहुत, बहुत दिनों का ।"
"लेकिन मै वहां पैदल जा सकता हूं। मैं बहुत मजबूत हूं। थकूंगा नहीं।"
"तुम ऐसा नहीं कर सकते, बोरिस !आगे एक सरहद और है, जिसे घर पहुंच से पहले तुम्हें पार करना होगा।"
"एक सरहद ?" उसने हैरान होकर उसकी ओर देखा। यह शब्द उसकी समझने से परे था।
इसके बाद बड़े ही आग्रह से उसने आगे कहा, "मैं तैर कर वहां जा सकता हूं।"
मैनेजर मुश्किल से हंसी रोक पाया, लेकिन वह उसकी हालत से दूखी हो गया।
उसने धीरे-से कहा, "नहीं, बोरिस, तुम ऐसा नहीं कर पाओगे सरहद का मतलब होता है दूसरा देश। वहां के लोग तुम्हें उस देश से नहीं गुजरने देगें।"
"लेकिन मैं उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा। मैंने अपनी बंदूक फेंक दी है। वे क्यों मुझे अपनी स्त्री के पास जाने की इजाजत देने से इन्कार कर देगें, जबकि मैं ईस के नाम पर गुजरने की प्रार्थना करुंगा?"
मैनेजर का चेहरा और भी गंभीर हो गया। उसकी आत्मा बेचैन हो गई।
"नहीं", उसने कहा, "वे तुम्हें नहीं जाने देंगें, बोरिग, ईसा के नाम पर भी नहीं आदमी अब ईसा के शब्द नहीं सुनते।"
"लेकिन मैं अब क्या करुं? मैं यहां नहीं रह सकता। मैं क्या कहता हूं। कोई नहीं समझता, न मैं लोगों की बात समझता हूं।"
"तुम कुछ ही दिनों उनकी बात समझना सीख लोगे।"
"नहीं," उसने सिर हिलाया, "मैं कभी नहीं सीख पाऊंगा। मैं धरती जोत सकता हूं और कुछ नहीं कर सकता । यहां मै क्या करुंगा? मैं घर जाना चाहता हूं। मझे कोई रास्ता बता दो।"
"कोई रास्ता नहीं हैं, बोरिस।"
"लेकिन वे लोग मुझे अपनी स्त्री-बच्चे के पास वापस जाने से नहीं रोक सकते अब मैं सैनिक नहीं हूं।"
"ठीक हैं, बोरिस, पर वे रोक सकते है।"
"लेकिन जार? वह जरुर ही मेरी मदद करेगा।" यह विचार अचानक उसके मन में आया था। आशा से वह थरथर कांपने लगा और जार का नाम उसने बड़े आदर से लिया।
" बोरिस, अब जार नहीं रहा। उसे गद्दी से उतार दिया गया।"
"अब जार नहीं है?" उसने शून्य आंखों से मैनेजर की ओर देखा। आशा की आखिरी किरण भी लुप्त हो गई थी। उसकी आंख से भी चमक जाती रही। उसने पस्त होकर कहा, "अच्छा , तो मैं घर नहीं जा सकता ?"
"अभी नहीं, बोरिस तुम्हें रुकना होगा।"
"क्या बहुत दिन तक?"
"मैं नहीं जानता।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217