मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा

नौवां अध्याय - तुम सचमुच जादूगर हो

पेज- 58

इस तरह ऊँच-नीच सोचकर उसने पूर्णा से पूछा-तुम क्या जवाब दो दोगी?
पूर्णा-जवाब ऐसी बातों का भी भल कहीं जवाब होता है। भला विधवाओं का कहीं ब्याह हुआ है और वही भी ब्रह्ममण का क्षत्रिय से। इस तरह की चन्द कहानियां मैंने उन किताबो में पढ़ी जो वह मुझे दे गये है। मगर ऐसी बात कहीं सैतुक नहीं देखने आयी।
बिल्लो समझी थी कि बाबू  साहब उसको घर डरानेवाले है। जब ब्याह का नाम सुना तो चकरा कर बोली-क्या ब्याह करने को कहते है?
पूर्णा-हॉँ।
बिल्लों—तुमसे?
पूर्णा-यही तो आर्श्च है।
बिल्लो—अचराज सा अचरज हैं भला ऐसी कहीं भया है। बालक पक गये मगर ऐसा ब्याह नहीं देखा।
पूर्णा-बिल्लो, यह सब बहाना है। उनका मतलब मैं समझ गयी।
बिल्लो-वह तो खुली बात है।
पूर्णा—ऐसा मुझसे न होगा। मैं जान दे दूँगी पर ऐसा न करुँगी।
बिल्लो—बहू उनका इसमें कुछ दोष नहीं है। वह बेचारे भी अपने दिल से हारे हुए हैं। क्या करें।
पूर्णा—हाँ बिल्लों, उनको नहीं मालूम क्यों मुझसे कुछ मुहब्बत हो गयी है और मेरे दिल का हाल तो तुमसे छिपा नहीं। अगर वह मेरी जान मॉँगते तो मैं अभी दे देती। ईश्वर जानता है, उनके ज़रा से इशारे पर मैं अपने को निछावर कर सकती हूँ।
मगर जो बात व चाहते है मुझसे न होगी। उसके सोचती हूँ तो मेरा कलेजा काँपने लगता है।
बिल्लो—हॉँ, बात तो ऐसा ही है मुदा...
पूर्णा-मगर क्या, भलेमानुसो में ऐसा कभी होता ही नहीं। हॉँ, नीच जातियों में सगाई, डोला सब कुछ आता है।
बिल्लो—बहू यह तो सच है। मगर तुम इनकार करोगी तो उनका दिल टूट जायेगा।
पूर्णा—यही डर मारे डालता है। मगर इनकार न करुँ तो क्या करुँ। यह तो मैं भी जानती हूँ कि वह झूठ-सच ब्याह कर लेंगे। ब्याह क्या कर लेंगे। ब्याह क्या करेंगे, ब्याह का नाम करेंगे। मगर सोचो तो दूनिया क्या कहेगी। लोग अभी से बदनाम कर रहे है, तो न जाने और क्या-क्या आक्षेप लगायेंगे। मैं सखी प्रेमा को मुँह दिखाने योग्स नहीं रहूँगी। बस यही एक उपाय है कि जान दे दूँ, न रह बॉँस न बजें बॉँसुरी। उनको दो-चार दिन तक रंज रहेगा, आखिर भूल जाऐंगे। मेरी तो इज्ज़त बच जायगी।

 

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