मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा

ग्यारहवाँ अध्याय - विरोधियों का विरोध

पेज- 68

भगेलू—चलो, चलो जल्दी। नहीं तो कचहरी की बेला आ जैहै।
चम्मन—आगे-आगे तुम चलो।
भगेलू—हमसे आगूँ न चला जैहै।
चम्मन—तब कौन आगूँ चलै?
भगेलू—हम केका बताई।
रम्मन—कोई न चलै आगूँ तो हम चलित है।
दुक्खी—तैं आगे एक बात कहित है। नह कोई आगूँ चले न कोई पीछूँ।
चम्मन---फिर कैसे चला जाय।
भगेलू—सब साथ-साथ चलैं।
चम्मन—तुम्हार क़पार
भगेलू—साथ चले माँ कौन हरज है?
मम्मन—तब सरकार से बतियाये कौन?
भगेलू—दुक्खी का खूब बितियाब आवत है।
दुक्खी—अरे राम रे मैं उनके ताई न जैहूँ। उनका देख के मोका मुतास हो आवत है।
भगेलू---अच्छा, कोऊ न चलै तो हम आगूँ चलित हैं
सब के सब चले। जब बरामदे में पहुँचे तो भगेलू रुक गया।
मम्मन—ठाढ़े काहे हो गयो? चले चलौ।
भगेलू---अब हम न जाबै। हमारा तो छाती धड़त है।
अमृतराय ने जो बरामदे में इनको सॉँय-साँय बातें करते सुना तो कमरे से बाहर निकल आये और हँस कर पूछा—कैसे चले, भगेलू?
भगेलू का हियाव छूट गया। सिर नीचा करके बोला—हजूर, यह सब कहार आपसे कुछ कहने आये है।
अमृतराय—क्या कहते है? यह सब तो बोलते ही नहीं
भगेलू—(कहारों से) तुमको जौन कुछ कहना होय सरकार से कहो।
कहार भगेलू के इस तरह निकल जाने पर दिल में बहुत झल्लये। चम्मन ने जरा तीखे होकर कहा—तुम काहे नाहीं कहत हौ? तुम्हार मुँह में जीभ नहीं है?
अमृतराय—हम समझ गये। शायद तुम लोग इनाम मॉँगने आये हो। कहारों से अब सिवाय हॉँ कहने के और कुछ न बन पड़ा। अमृतराय ने उसी दम पॉँच रुपया भगेलू के हाथ पर रख दिया। जब यह सब फिर अपनी काठरी में आये तो यों बातें करने लगे—

 

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