मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा

ग्यारहवाँ अध्याय - विरोधियों का विरोध

पेज- 69

चम्मन—भगेलुआ बड़ा बोदा है।
रम्मन—अस रीस लागत रहा कि खाय भरे का देई।
दुक्खी—वहॉँ जाय के ठकुरासोहाती करै लागा।
भगेलू—हमासे तो उनके सामने कुछ कहै न गवा।
दुक्खी---तब काहे को यहॉँसे आगे-आगे गया रह्यो।
इतने में सुखई कहार लकडी टेकता खॉसता हुआ आ पहुँचा। और इनको जमा देखकर बोला—का भवा? सरकार का कहेन?
दुक्खी—सरकार के सामने जाय कै सब गूँगे हो गये। कोई के मुँह से बात न लिकली।
भगेलू—सुखई दादा तुम नियाव करो, जब सरकार हँसकर इनाम दे लागे तब कैसे कहा जात कि हम नौकरी छोड़न आये हैं।
सुखई—हम तो तुमसे पहले कह दीन कि यहॉँ नौकरी छोड़ी के सब जने पछतैहो। अस भलामानुष कहूँ न मिले।
भगेलू—दादा, तुम बात लाख रुपया की कहत हो।
चम्मन—एमॉँ कौन झूठ हैं। अस मनई काहॉँ मिले।
रम्मन आज दस बरस रहत भये मुदा आधी बात कबहूँ नाहीं कहेन।
भगेलू—रीस तो उनके देह में छू नहीं गै। जब बात करत है हँसकर।
मम्मन—भैया, हमसे कोऊ कहत कि तुम बीस कलदार लेव और हमारे यहॉँ चल के काम करो तो हम सराकर का छोड़ के कहूँ न जाइत। मुद्रा बिरादरी की बात ठहरी। हुक्का-पानी बन्द होई गवा तो फिर केह के द्वारे जैब।
रम्मन—यही डर तो जान मारे डालते है।
चम्मन—चौधरी कह गये हैं किआज इनकेर काम न छोड़ देहों तो टाट बाहर कर दीन जैही।

सुखई—हम एक बेर कह दीन कि पछतौहो। जस मन मे आवे करो।

 

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