मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा

ग्यारहवाँ अध्याय - विरोधियों का विरोध

पेज- 74

बाबू अमृतराय ने जब देखा कि द्रोही लोग इसी तरह पीछे पड़े तो उसी दम लाला धनुषधारीलाल को तार दिया कि आप हमारे याहॉँ पॉँच होशियार खिदमतगार भेज दीजिए। लाला साहब पहले ही समझे हुए थे कि बनारस में दुष्ट लोग जितना ऊधम मचायें थोड़ा हैं। तार पाते ही  उन्होंने अपने अपने होटल के पॉँच नौकरों को बनारस रवाना किया। जिनमें एक काश्मीरी महराज भी थी। दूसरे दिन यह सब आ पहुँचे। सब के सब पंजाबी थे, जो न तो बिरादरी के गुलाम थे और न जिनको टाट बाहर किये जाने का खटका था। विरोधियों ने उसके भी कान भरने चाहे। मगर कुछ दॉँव चला। सौदा भी लखनऊ से इतना मॉँगा लिया जो कई महीनों को काफ़ी था।

जब लोगों ने देखा इन शरारतों से अमृतराय को कुछ हानि पहुँची तो और ही चाल चले। उनके मुवक्किलों को बहकाना शुरु किया कि वह तो ईसाई हो गये हैं। साहबों के संग  बैठकर खाते हैं। उनको किसी जानवर के मांस से विचार नहीं है। एक विधवा ब्रह्माणी से विवाह कर लिया है। उनका मुँह देखना, उनसे बातचीत करना भी शास्त्र के विरुद्ध है। मुवक्किलों को बहकाना शुरु कि याह कि वह तो ईसाई हो गये है। विधवा ब्रह्मणी से विवाह कर लिया है। उनका मुँह देखना, उनसे बातचीत करना भी शास्त्र के विरुद्ध है। मुवक्किलों में बहुधा करके देहातों के राजपूत ठाकुर और भुंइहार थे जो यहाता अविद्या की कालकोठरी में पड़े हुए थे या नये ज़माने क चमत्कार ने उन्हें चौंधिया दिया था। उन्होंने जब यह सब ऊटपटाँग बातें सुनी तब वे बहुत बिगड़े, बहुत झल्लाये और उसी दम कसम खाई की अब चाहे जो हो इस अधर्मी को कभी मुकदमा न देंगे। राम राम इसको वेदशास्त्र का तनिक विचार नहीं भया कि चट एक रॉँड़ को घर में बैठाल लिया। छी छी अपना लोक-परलोक दोनों बिगाड़ दिया। ऐसा ही था तो हिन्दू के घर में काहे को जन्म लिया था। किसी चोर-चंडाल के घर जनमे होते। बाप-दादे का नाम मिटा दिया। ऐसी ही बातें कोई दो सप्ताह तक उने मुवक्किलों में फैली। जिसका परिणाम यह हुआ कि बाबू अमृतराय का रंग फीका पड़ने लगा। जहॉँ मारे मुकदमों के सॉँस लेने का अवकाश न मिलता था। वहॉँ  अब दिन-भर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की नौबत आ गयी। यहॉँ तक कि तीसरा सप्ताह कोरा बीत गया और उनको एक भी अच्छा मुकदमा न मिला।

 

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