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मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा
दूसरा अध्याय- जलन बुरी बला है
पेज- 8
हॉँ, शहर के पुराने हिन्दू लोग इस विवाह के खिलाफ थे। वह कहते कि अमृतराय सब गुण आगर सही, मगर है तो ईसाई। उनसे प्रेमा जैसी लड़की का विवाह करना ठीक नहीं है। मुंशी जी के नातेदार लोग भी इस शादी के विरूद्व थे। इसी खींचातानल में पॉँच बरस बीत चुके थे। अमृतराय भी कुछ बहुत उद्यम न मालूम होते थे। मगर इस साल मुंशी बदरीप्रसाद ने भी हियाब किया, और अमृतराय भी मुस्तैद हुए और विवाह की साइत निश्चय की गयी। अब दोनों तरफ तैयारियां हो रही थी। प्रेमा की मां अमृतराय के नाम पर बिकी हुई थी और लड़की के लिए अभी से गहने पाते बनवाने लगी थी, कि निदान आज यह महाभयानक खबर पहुँची कि अमृतराय ईसाई हो गया है और उसका किसी मेम से विवाह हो रहा है।
इस खबर ने मुंशी जी के दिल पर वही काम किया जो बिजली किसी हरे भरे पेड़ परगिर कर करती है। वे बूढ़े तो थे ही, इसधक्के को न सह सके और पछ़ाड खाकर जमीन पर गिर पड़े। उनका बेसुध होना था कि सारा भीतर बाहर एक हो गया। तमांम नौकर चाकर, अपने पराये इकटठे हो गये और ‘क्या हुआ’। ‘क्या हुआ’। का शोर मचने लगा। अब जिसको देखिये यही कहता फिरता है कि अमृतराय ईसाई हो गया है। कोई कहता है थाने में रपट करो, कोई कहता है चलकर मारपीट करो। बाहर से दम ही दम में अंदर खबर पहुँची। वहा भी कुहराम मच गया। प्रेमा की मां बेचारी बहुत दिनों से बीमार थी। और उन्हीं की जिद थी कि बेटी की शादी जहॉँ तक जल्द हो जाय अच्छा है। यद्यपि वह पुराने विचार की बूढ़ी औरत थी और उनको प्रेमा का अमृतराय के पास प्रेम पत्र भेजना एक ऑंख न भाता था। तथापि जब से उन्होने उनको एक बार अपने आंगन में खड़े देख लिया था तब से उनको यही धुन सवार थी कि मेरी ऑंखों की तारा का विवाह हो तो उन्हीं से हो। वह इस वक्त बैठी हुई बेटी से बातचीत कर रही थी कि बाहर से यह खबर पहूँची। वह अमृतराय को अपना दमाद समझने लगी थी—और कुछ तो न हो सका बेटी को गले लगाकर रोने लगी। प्रेमा ने आसू को रोकना चाहा, मगर न रोक सकी। उसकी बरसों की संचित आशारूपी बेल-क्षण मात्र में कुम्हला गयी। हाय। उससे रोया भी न गया। चित्त व्याकुल हो गया। मॉँ को रोती छोड़ वह अपने कमरे में आयी, चारपाई पर धम से गिर पड़ी। जबान से केवल इतना निकला कि नारायण, अब कैसे जीऊँगी और उसके भी होश जाते रहे। तमाम धर की लौड़ियॉँ उस पर जान देती थी। सब की सब एकत्र हो गयीं। और अमृतराय को ‘हत्यारे’ और ‘पापी’ की पदवियॉँ दी जाने लगी।
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