कुछ देर तक तीनों आदमी बैठे गप-शप करते रहे। जब दस बजने को आये तो लोग अपने-अपने कमरों में विश्राम करने चले गये। बाबू साहब भी लेटे। दिन-भर के थके थे। अखबार पढ़ते-पढ़ते सो गये। मगर बेचारी पूर्णा की ऑंखों में नींद कहॉँ? वह बार बजे तक एक कहानी पढ़ती रही। जब तमाम सोता पड़ गया और चारो तरफ सन्नाटा छा गया तो उसे अकेले डर मालूम होने लगा। डरते ही डरते उठी और चारों तरफ के दरवाजे बन्द कर लिये। मगर जवनी की नींद, बहुत रोकने पर भी एक झपकी आ ही गयी। आधी घड़ी भी न बीती थी कि भय में सोने के कारण उसे एक अति भंयकर स्वप्न दिखायी दिया। चौंककर उठ बैठी, हाथ-पॉँव थर-थर कॉँपने लगे। दिल में धड़कन होने लगी। पति का हाथ पकड़कर चाहती थी कि जगा दें। मगर फिर यह समझकर कि इनकी प्यारी नींद उचट जएगी तो तकलीफ होगी, उनका हाथ छोड़ दिया। अब इस समय उसकी जो अवस्था है वर्णन नहीं की जा सकती। चेहरा पीला हो रहा है, डरी हुई निगाहों से इधर-उधर ताक रही है, पत्ता भी खड़खड़ाता है ता चौंक पड़ती हैं। कभी अमृतराय के सिरहाने खड़ी होती है, कभी पैताने। लैम्प की धुंधली रोशनी में वह सन्नाटा और भी भयानक मालूम हो रहा है। तसवीरे जो दीवारों से लटक रही है, इस समय उसको घूरते हुए मालूम होती है। उसके सब रोंगटे खड़े हैं। पिस्तौल हाथ में लिये घबरा-घबरा कर घड़ी की तरफ देख रही हैं। यकायक उसको ऐसा मालूम हुआ कि कमरे की छत दबी जाती है। फिर घड़ी की सुइयों को देखा। एक बज गया था इतने ही में उसको कई आदमियों के पॉँव की आहट मालूम हुई। कलेजा बॉंसों उछालने लगा। उसने पिस्तौल सम्हाली। यह समझ गयी कि जिन लोगों के आने का खटका था वह आ गये। तब भी उसको विश्वास था कि इस बन्द कमरे में कोई न आ सकेगा। वह कान लगाये पैरों की आहट ले रही थी कि अकस्मात दरवाजे पर बड़े जोर से धक्का लगा और जब तक वह बाबू अमृतराय को जगाये कि मजबूत किवाड़ आप ही आप खुल गये और कई आदमी धड़धड़ाते हुए अन्दा घुस आये। पूर्णा ने पिस्तौल सर की। तड़ाके की आवाज हुई। कोई धम्म से गिर पड़ा, फिर कुछ खट-खट होने लगा। दो आवाजे पिस्तौल के छुटने की और हुई। फिर धमाका हुआ। इतने में बाबू अमृतराय चिल्लाये। दौड़ो-दौड़ो, चोर, चोर। इस आवाज के सुनते ही दो आदमी उनकी तरफ लपके। मगर इतने में दरवाजे पर लालटेन की रोशनी नजर आयी और प्राणानाथ और जीवननाथ हाथों में सोटे लिए आ पहुँचे। चोर भागने लगे, मगर दो के दोनों पकड़ लिए गये। जब लालटेने लेकर जमीन पर देखा तो दो लाशे दिखायी दीं। एक तो पूर्णा की लाश थी और दूसरी एक मर्द की। यकायक प्राणनाथ ने चिल्ला कर कहा—अरे यह तो बाबू दाननाथ हैं।
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