कुमारगुप्त प्रथम (415 ई. से 454 ई.)
चन्द्रगुप्त द्वितीय के पश्चा्त् 415 ई. में उसका पुत्र कुमारगुप्त प्रथम सिंहासन पर बैठा । वह चन्द्रगुप्त द्वितीय की पत्नीत ध्रुवदेवी से उत्पन्न सबसे बड़ा पुत्र था, जबकि गोविन्दगुप्त उसका छोटा भाई था । यह कुमारगुप्त के बसाठ (वैशाली) का राज्यपाल था ।
कुमारगुप्त प्रथम का शासन शान्ति और सुव्यवस्था का काल था । साम्राज्य की उन्नमति के पराकाष्ठा पर था । इसने अपने साम्राज्य का अधिक संगठित और सुशोभित बनाये रखा । गुप्त सेना ने पुष्यमित्रों को बुरी तरह परास्त किया था ।
कुमारगुप्त ने अपने विशाल साम्राज्य की पूरी तरह रक्षा की जो उत्तर में हिमालय से दक्षिण में नर्मदा तक तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चि्म में अरब सागर तक विस्तृत था ।
कुमारगुप्त प्रथम के अभिलेखों या मुद्राओं से ज्ञात होता है कि उसने अनेक उपाधियाँ धारण कीं । उसने महेन्द्र कुमार, श्री महेन्द्र, श्री महेन्द्र सिंह, महेन्द्रा दिव्य आदि उपाधि धारण की थी ।
मिलरक्द अभिलेख से ज्ञात होता है कि कुमारगुप्त के साम्राज्य में चतुर्दिक सुख एवं शान्ति का वातावरण विद्यमान था ।
कुमारगुप्त प्रथम स्वयं वैष्णव धर्मानुयायी था, किन्तु उसने धर्म सहिष्णुता की नीति का पालन किया ।
गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त के ही प्राप्त हुए हैं । उसने अधिकाधिक संक्या में मयूर आकृति की रजत मुद्राएं प्रचलित की थीं । उसी के शासनकाल में नालन्दा विश्वएविद्यालय की स्थापना की गई थी ।
कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल की प्रमुख घटनओं का निम्न विवरण है-
1. पुष्यमित्र से युद्ध- भीतरी अभिलेख से ज्ञात होता है कि कुमारगुप्त के शासनकाल के अन्तिम क्षण में शान्ति नहीं थी । इस काल में पुष्यमित्र ने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण किया । इस युद्ध का संचालन कुमारगुप्त के पुत्र स्कन्दगुप्त ने किया था । उसने पुष्यमित्र को युद्ध में परास्त किया ।
2. दक्षिणी विजय अभियान- कुछ इतिहास के विद्वानों के मतानुसार कुमारगुप्त ने भी समुद्रगुप्त के समान दक्षिण भारत का विजय अभियान चलाया था, लेकिन सतारा जिले से प्राप्त अभिलेखों से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है ।
अश्व मेध यज्ञ- सतारा जिले से प्राप्त 1,395 मुद्राओं व लेकर पुर से 13 मुद्राओं के सहारे से अश्व मेध यज्ञ करने की पुष्टि होती है ।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217