स्कन्दगुप्त (455 ई. से 467 ई.)
पुष्यमित्र के आक्रमण के समय ही गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम की 455 ई. में मृत्यु हो गयी थी । उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र स्कन्दगुप्त सिंहासन पर बैठा । उसने सर्वप्रथम पुष्यमित्र को पराजित किया और उस पर विजय प्राप्त की । उसने 12 वर्ष तक शासन किया । स्कन्दगुप्त ने विक्रमादित्य, क्रमादित्य आदि उपाधियाँ धारण कीं । कहीय अभिलेख में स्कन्दगुप्त को शक्रोपन कहा गया है ।
उदारता एवं परोपकरिता का कार्य- स्कन्दगुप्त का शासन बड़ा उदार था जिसमें प्रजा पूर्णरूपेण सुखी और समृद्ध थी । स्कन्दगुप्त एक अत्यन्त लोकोपकारी शासक था जिसे अपनी प्रजा के सुख-दुःख की निरन्तर चिन्ता बनी रहती थी ।
जूनागढ़ अभिलेख से पता चलता है कि स्कन्दगुप्त के शासन काल में भारी वर्षा के कारण सुदर्शन झील का बाँध टूट गया था उसने दो माह के भीतर अतुल धन का व्यय करके पत्थरों की जड़ाई द्वारा उस झील के बाँध का पुनर्निर्माण करवा दिया ।
हूणों का आक्रमण- हूणों का प्रथम आक्रमण स्कन्दगुप्त के काल में हुआ था । हूण मध्य एशिया की एक बर्बर जाति थी । हूणों ने अपनी जनसंख्या और प्रसार के लिए दो शाखाओं में विभाजित होकर विश्वक के विभिन्नर क्षेत्रों में फैल गये । पूर्वी शाखा के हूणों ने भारत पर अनेकों बार आक्रमण किया । स्कन्दगुप्त ने हूणों के आक्रमण से रक्षा कर अपनी संस्कृति को नष्ट होने से बचाया ।
गोविन्दगुप्त का विद्रोह- यह स्कन्दगुप्त का छोटा चाचा था, जो मालवा के गवर्नर पद पर नियुक्ति था । इसने स्कन्दगुप्त के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । स्कन्दगुप्त ने इस विद्रोह का दमन किया ।
वाकाटकों से युद्ध- मन्दसौर शिलालेख से पता चलता है कि स्कन्दगुप्त की प्रारम्भिक कठिनाइयों का फायदा उठाते हुए वाकाटक शासक नरेन्द्र सेन ने मालवा पर अधिकार कर लिया परन्तु स्कन्दगुप्त ने वाकाटक शासक नरेन्द्र सेन को पराजित कर दिया ।
स्कन्दगुप्त राजवंश का आखिरी शक्तिकशाली सम्राट था ।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217