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प्रियवदंबा
सौरभ कुमार
(Copyright © Saurabh Kumar)
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उन अश्कों के लिए जो कभी उन आंखों में छलके
प्रियवदंबा
(गांगेय: अम्बा से प्रियवदंबा तक)
पेज 6
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किसी का लावण्य से भरा चेहरा भी सुर्ख हो कर किस प्रकार श्रीहीन हो जाता है यह अम्बा को देख कर समझा जा सकता है। अग्नि में प्रवेश के लिए बढ़ते हुए उसके मन में उलझन नहीं था। लेकिन जीवन के प्रति आस्था क्या इतनी आसानी से मिट सकती है। उसके आँखों ने कब से काजल लगाना छोड़ दिया था। उसके अश्क जब नि:शब्द रूप से निकल पड़े तो आँख के काजल का आखिर कालिमा अंश भी धुल गया। लेकिन जीवन के सार्थकता के प्रश्न को लेते हीं वही तेज लहरा उठा और वह अगले मनचाहे जन्म के लिए अग्नि में प्रवेश कर गई। जो स्नेह और नफरत एक जन्म में नहीं समा पाता वही अगले जन्म का शपथ बन जाता है। चाहे फिर वह एक जन्म की कहानी बने या सच में जीवन हीं उसी का बन कर रह जाए।
हस्तिनापुर में गांगेय और सत्यवती इन सबसे उबर भी ना पाए थे कि घायल विचित्रवीर्य की मृत्यु हो गई। सत्यवती महारानी रह गई और उनका वंश बेल मुरझा चुका था। सत्यवती के लिए नियति के बारे में एक हीं भाव रह-रह कर कौंध जाता था-
आह निकली भी न थी
और वो खफ़ा हो बैठे।
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जिस कुरू राजगद्दी पर गांगेय का सहज हक था। जिस कुरू राजगदी पर विराजमान अपने पिता महाराज की शपथ लिए वह बंधा हुआ था अब वह उसके हीं रिश्ते में बंधे भाई महर्षि व्यास के नियोग से उत्पन्न संतानों की छाया से बंध चुका था। हस्तिनापुर के एक उत्तराधिकारी पाण्डव शिखण्डी को आगे लिए खड़े थे तो दूसरी और दूसरा उत्तराधिकारी राजगद्दी की प्रवाहमान गति लिए हुए था। प्रश्न यह नहीं था कि गद्दी पर कौन है, प्रश्न यह है कि राजगद्दी तो वही है, हस्तिनापुर तो वही है। सुरक्षा करने का प्रश्न तो उससे हीं जुड़ा हुआ है। जिस सत्यवती ने अपने पराशर ऋषि से उत्पन्न पुत्र व्यास द्वारा अपने वंश को बढ़ाया वह कभी भी संपूर्ण रूप से संभल नहीं पाया। धृतराष्ट्र अगर अंधा होने की वजह से युद्ध में नेतृत्व करने में अक्षम होने की वजह से राजा होने के लिए अक्षम था। तो पाण्डु राजा होकर भी जीवन को सहज रूप से न भोगने के श्राप के कारण अक्षम सिद्ध हुआ। वह तो चला गया गांगेय भीष्म बन कर सभी के असफलता का दायित्व निभाने के लिए पितामह बन गया। वह उनका पितामह बना जो देवताओं के कुंती और माद्री के पुत्र होने के बाद भी अपने अधिकार और संरक्षण के लिए उस पर निर्भर थे यद्यपि वे योग्य और समर्थ थे। तो वह उनका भी पितामह बना जिनके लिए शरीर से अंधा हीं नहीं मानसिक रूप से भी महाराज धृतराष्ट्र अंधा बन चुका था। स्नेह और उत्तरदायित्व के बीच अब वह कुरूक्षेत्र के मैदान में खड़ा था। जिम्मेदारी से अलग होकर जितना परिस्थिति से निकलने के लिए सोचना आसान है उतना भावनाओं के लहर में खड़ा होकर नहीं होता। चाहे कोई गलत हो या दो पक्ष गलती पर हों। कई बार कौन कहाँ तक गलत था इस पर हीं गलती शुरू होती है। और जब गलती शुरू होती है तो गलती शुरू हीं हो जाती है और बीच में भावनाओं में न्याय करना या परिस्थिति संभालना उसे गलत हीं दूसरों की निगाह में बना कर छोड़ता है। इस सही गलत की उलझन में पड़ा वह हस्तिनापुर की राजगद्दी की सुरक्षा से जुड़ा वह हस्तिनापुर का प्रधान सेनापति बन कर खड़ा होता है।
पक्षधरता का प्रश्न महत्वपूर्ण है। पर जो इस प्रश्न को उठाते हैं वो क्या खुद जिस पक्ष में खड़े होते हैं क्या उस पक्ष की न्यून या उससे अधिक त्रुटियों से संलिप्त नहीं होते। आगे सब सुधर जाएगा क्या इस तृष्णा से आदमी निकल पाता है। विजयी भव: का आशीर्वाद देकर भी अगर वह उनके विपक्ष में खड़ा था तो अगर वह उनके विरूद्ध में खड़ा होने के लिए गलत था तो अपने पक्ष से अलग सोच सकने की उसकी पक्षधरता की दाद देनी चाहिए।
20.
अम्बा ने अगला जन्म पुरूष शरीर को न पाकर जल में समाधि ले लिया था। अगले जन्म में वह पांचाल राज द्रुपद के यहाँ शिव के आशीर्वाद से स्त्री के रूप में हुई। दशार्णाराज हिरण्यवर्मा की पुत्री से शिखण्डी का विवाह हुआ था। विवाह के बाद भेद खुल जाने के डर से वह वन में तपस्या करने लगी। स्थूणाकर्ण यक्ष उस काल का अवश्य ही महान वैज्ञानिक तथा शल्य चिकित्सक रहा होगा जिसने शिखण्डी को स्त्री से पुरूष शरीर प्रदान किया। पुरूष बन कर वह गांगेय भीष्म के सामने खड़ा था।
नौ दिन के युद्ध के बाद भी अगर पलड़ा दोनों तरफ डोलता रहा तो अपने पौत्र युधिष्ठिर को अपने को युद्ध से अलग करने का रहस्य भी खुद बता दिया। क्योंकि अगर अर्जुन नारायणी सेना का विनाश कर रहा था तो स्वधर्में निधनं श्रेय का मंत्र लिए खुद उनका पितामह हीं प्रधान सेनापति के कर्त्तव्य से बंधा उनका बड़ी तेजी से सफाया कर रहा था। भीष्म जानते थे शिखण्डी के रूप में खड़ा खुद अम्बा हीं है। और गांगेय की मृत्यु खुद अगर उन्हें कर्त्तव्य के बंधन से मुक्त कर देगा तो अम्बा को भी कई जन्मों में चलने वाली ताप से मुक्त कर देगा। इसलिए अगला दिन अगर हस्तिनापुर की सुरक्षा में भीष्म खड़े थे तो शिखण्डी को व्यूह में गांगेय के आगे खड़ा कर पाँचों पाण्डव का संपूर्ण तेज खड़ा था।
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