परिशिष्ट (ख) अंतर्कथाएँ
नृग
इक्ष्वाकु वंश का एक दानी राजा, जो ब्राह्मण को दान में दी हुई गाय भूल से पुनः
दूसरे ब्राह्मण को दे देने के कारण गिरगिट हो गया था और जिसे श्रीकृष्ण के स्पर्श
मात्र से पुनः मनुष्य रूप मिला और जो भगवत्कृपा से श्रेष्ठ विमान पर चढ़ कर दिव्य
लोक चला गया |
पूतना
कंस की भेजी हुई एक राक्षसी, जो शिशु कृष्ण के प्रति वात्सल्य दिखाकर विष-लगे स्तन
का दूध पिलाकर उन्हें मार डालना चाहती थी, परंतु जिसे उलटे कृष्ण ने दूध पीते-पीते
मार डाला और इस तरह उसका उद्धार कर दिया |
प्रलंब
एक असुर, जो कृष्ण-बलराम को हर ले जाने के लिए गोप रूप धारण करके वृंदावन में
गोचारण के समय गोपों में मिल गया और उनके साथ खेलने लगा | खेल में हारने पर जब वह
बलराम को पीठ पर लादकर ले चला तो उसका असली उद्देश्य और रूप प्रकट हुआ |
बलराम ने भयंकर असुर को एक ही मुष्टि-प्रहार से मार डाला |
प्रहलाद
एक आदर्श वैष्णव भक्त जो अपने पिता दैत्यराज हिरण्यकरिपु द्वारा सर्प से कटवाए जाने
हाथी से कुचलवाए जाने, पहाड़ से गिराए जाने तथा अग्नि में जलाए जाने पर भी विष्नु
की भक्ति से विचलित नहीं हुआ | सर्वव्यापक भगवान ने उसकी निरन्तर रक्षा की और इसी
हेतु खंभे से नृसिंह रूप में प्रकट होकर पापी हिरण्यकशिपु का बध कर दिया |
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217