भावानुवाद - जैनेन्द्र कुमार
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दो बहने थी। बड़ी का कस्बे में एक सौदागर से विवाह हुआ था। छोटी देहात में किसान के घर ब्याह थी। बड़ी का अपनी छोटी बहन के यहां आना हुआ। निबटकार दोनों जनी बैठीं तो बातों का सूत चल पड़ा। बड़ी अपने शहर के जीवन की तारीफ करने लगी, ‘‘देखो, कैसे आराम से हम रहते हैं। फैंसी कपड़े और ठाठ के सामान! स्वाद-स्वाद की खाने-पीने की चीजें, और फिर तमाशे-थियेटर, बाग-बगीचे!’’
छोटी बहन को बात लग गई। अपनी बारी पर उसने सौदागर की जिंदगी को हेय बताया और किसान का पक्ष लिया। कहा, ‘‘मैं तो अपनी जिंदगी का तुम्हारे साथ अदला-बदला कभी न करुं। हम सीधे-सादे और रुखे-से रहते हैं तो क्या, चिंता-फिकर से तो छूटे हैं। तुम लोग सजी-धजी रहती हो, तुम्हारे यहां आमदनी बहुत है, लेकिन एक रोज वह सब हवा भी हो सकता है, जीजी। कहावत हे ही—‘हानि-लाभ दोई जुड़वा भाई।’ अक्सर होता है कि आज तो अमीर है कल वही टुकड़े को मोहताज है। पर हमारे गांव के जीवन में यह जोखिम नहीं है। किसानी जिंदगी फूली और चिकनी नहीं दीखती तो क्या, उमर लंबी होती है और मेहनत से तन्दुरुस्ती भी बनी रहती है। हम मालदार न कहलायेगे: लेकिन हमारे पास खाने की कमी भी कभी न होगी।’’
बड़ी बहन ने ताने से कहा, ‘‘बस-बस, पेट तो बैल और कुत्ते का भी भरता है। पर वह भी कोई जिंदगी है? तुम्हें जीवन के आराम, अदब और आनन्द का क्या पता है? तुम्हारा मर्द जितनी चाहे मेहनत करे, जिस हालत में तुम जीते हो, उसी हालत में मरोगे। वहीं चारों तरफ गोबर, भुस, मिट्टी! और यही तुम्हारे बच्चों की किस्मत में बदा है।’’
छोटी ने कहा, ‘‘तो इसमें क्या हुआ! हां, हमारा काम चिकना-चुपड़ा नहीं हैं; लेकिन हमें किसी के आगे झुकने की भी जरुरत नहीं है। शहर में तुम हजार लालच से घिरी रहती हो। आज नहीं तो कल की क्या खबर है! कल तुम्हारे आदमी को पाप को लोभ—जुआ, शराब और दूसरी बुराइयां फंसा सकते हैं, तब घड़ी भर में सब बरबाद हो जायगा। क्या ऐसी बातें अक्सर होती नहीं हैं?’’
घर का मालिक दीना ओसारे में पड़ा औरतों की यह बात सुन रहा था। उसने सोचा कि बात तो खरी है। बचपन से मां धरती की सेवा में हम इतने लगे रहते हैं कि कोई व्यर्थ की बात हमारे मन में घर नहीं कर पाती है। बस, है तो मुश्किल एक। वह यह कि हमारे पास जमीन काफी नहीं है। जमीन खूब हो तो मुझे किसी का परवा न रहे, चाहे शैतान ही क्यों न हो!
वहीं कोने में शैतान दुबका बैठा था। उसने सबकुछ सुना। वह खुश था किसान की बीवी ने गांव की बड़ाई करके अपने आदमी को डींग पर चढ़ दिया। देखो न, कहता था कि जमीन खूब हो तो फिर चाहे शैतान भी आ जाय, तो परवा नहीं। शैतान ने मन में कहा कि अच्छा हजरत, यही फैसला सही। मैं तुमको काफी जमीन दूंगा और देखना है कि उसी से तुम मेरे चंगुल में होते हो कि नहीं।
गांव के पास ही जमींदारी की मालकिन की कोठी थी। कोई तीन सौ एकड़ उनकी जमीन थी। उनके अपने आसामियों के साथ बड़े अच्छे सम्बन्ध रहते आये थे; लेकिन उन्होंने एक कारिन्दा रक्खा, जो पहले फौज में रहा था। उसने आकर लोगों पर जुरमाने ठोकरे शुरु कर दिये।
दीना का यह हाल था कि वह बहुतेरा करता, पर कभी तो उसका बैल जमींदारी की चरी में पहुंच जाता, कभी गाय बगिया में चरती पाई जाती। और नहीं तो उनकी रखाई हुई घास में बछिया-बछड़ा ही जा मुंह मारते। हर बार दीना को जुर्माना उठाना पड़ता। जुर्माना तो वह देता, पर बेमन से। वह कुनमुनाता और चिढ़ा हुआ-सा घर पहुंचता और अपनी सारी चिढ़ घर में उतारता। पूरे मौसम कारिंदे की वजह से उसे ऐसा त्रास भुगतना पड़ा।
अगले जाड़ों में गांव में खबर हुई कि मालकिन अपनी जमीन बेच रही हैं और मुंशी इकरामअली से सौदे की बातचीत चल रही है। किसाने सुनकर चौकत्रे हुए। उन्होंने सोचा कि मुंशीजी की जमीन होगी तो वह जमींदार के कारिन्दे से भी ज्यादा सख्ती करेंगे और जुर्माने चढ़ावेंगे और हमारी तो गुजर-बसर इसी जमीन पर है।
यह सोचकर किसान मालकिन के पास गये। कहा कि मुंशीजी को जमीन न दीजिए। हम उससे बढ़ती कीमत पर लेने को तैयार हैं। मालकिन राजी हो गईं। तब किसानों ने कोशिश की कि मिलकर गांव-पंचायत की तरफ से वह सब जमीन पर जा से ताकि वह सभी की बनी रहे। दो बार इस पर विचार करने को पंचायत जुड़ी पर फैसला न हुआ। असल में शैतान की सब करतूत थी। उसने उनके बीच फूट डाल दी थी। बस, तब वे मिलकर किसी एक मत पर आ ही नहीं से। तय हुआ कि अलग-अलग करके ही वह जमीन ले ली जाय। हर कोई अपने बित्ते के हिसाब से ले। मालकिन पहले की तरह इस बात पर भी राजी हो गई।
इतने में दीना को मालूम हुआ कि एक पड़ोसी इकट्ठी पचास एकड़ जमीन ले रहा है और जमींदारिन राजी हो गई हैं कि आधा रुपया अभी नकद ले लें, बाकी साल भर बाद चुकता हो जायगा। दीना ने अपनी स्त्री से कहा कि और जने जमीन खरीद रहे है। हमें भी बीस या इतने एकड़ जमीन ले लेनी चाहिए। जीना वैसे भार हो रहा है और वह कारिदा जुर्माने-पर-जुर्माने करके हमें बरबाद ही कर देगा।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217