जन्म: 1689 ईसवी (लगभग)
निधन: 1739 ईसवी (लगभग)
घनानन्द का परिचय
रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं-रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त में घनानन्द अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिमुक्त घनानन्द का समय सं. 1746 तक माना है। इस प्रकार आलोच्य घनानन्द वृंदावन के आनन्दघन हैं। शुक्ल जी के विचार में ये नादिरशाह के आक्रमण के समय मारे गए। श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी का मत भी इनसे मिलता है। लगता है, कवि का मूल नाम आनन्दघन ही रहा होगा, परंतु छंदात्मक लय-विधान इत्यादि के कारण ये स्वयं ही आनन्दघन से घनानन्द हो गए। अधिकांश विद्वान् घनानन्द का जन्म दिल्ली और उसके आसपास का होना मानते हैं। घनानन्द मुहम्मदशाह रंगीले के दरबार में खास-कलम (प्राइवेट सेक्रेटरी) थे । इस पर भी - फारसी में माहिर थे- एक तो कवि और दूसरे सरस गायक । प्रतिभासंपन्न होने के कारण बादशाह का इन पर विशष अनुग्रह था । भगवान् कृष्ण’ के प्रति अनुरक्त होकर वृंदावन में उन्होंने निम्बार्क संप्रदाय में दीक्षा ली और अपने परिवार का मोह भी इन्होंने उस भक्तिके कारण त्याग दिया। मरते दम तक वे राधा कृष्ण संबंधी गीत, कवित्त-सवैये लिखते रहे। विश्वनाथप्रसाद मिश्र के मतानुसार उनकी मृत्यु अहमदशाह अब्दाली के मथुरा पर किए गए द्वितीय आक्रमण में सं. 1817 (सन् 1671) में हुई थी ।
रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं-रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त में घनानन्द अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। रीतिबद्ध कवियों के लिए आवश्यक शर्त यह थी कि उन्हें ग्रंथ-रचना के नियमों से बँधा और जकड़ा रहना पड़ता था। अपने मनोभावों को वे लक्षण के अनुसार अभिव्यक्त करते थे। दूसरी कोटि के कवि अर्थात् रीतिसिद्ध कवियों के लिए इस प्रकार की कोई आवश्यक शर्त न थी कि उन्हें रीतिग्रंथ ही लिखना है-परंतु वे कवि भी स्वतंत्र भावाभिव्यक्ति के लिए उन्मुक्त न थे। ये कवि लक्षणबद्ध ग्रंथ की रचना नहीं करते थे, परंतु इनकी काव्य-रचना में रीति का पूरा-पूरा प्रभाव था, जैसे बिहारी, रसनिधि इत्यादि । ये कवि रीतिबद्ध काव्य-रचना के मार्ग पर नहीं चलते थे - पर उसी मार्ग के साथ-साथ ही इनको बचना पड़ता था। फलतः इनकी काव्य-रचना में वे नियम कुछ शिथिल थे, जिन्हें रीतिबद्ध कवियों ने प्राणप्रण से अपना रखा था। तीसरे प्रकार के कवि वे थे, जो न तो रीतिबद्ध थे, न रीतिबद्ध –अर्थात वे रीतिमुक्त कवि थे - जिन्हें ‘रीति’ के नाम से ही घृणा थी - वे रीति का छायामात्र से भी दूर भागते थे। अपने हृदय की उमंगपूर्ण, स्वानुभूत भावनाओं को इन कवियों ने उसी रूप में अभिव्यक्त किया, जैसी उनकी अनुभूति थी । फलतः अपनी स्वच्छंद वृत्ति के कारण ये कवि रीतिमुक्त कवि कहलाए। घनानन्द, बोधा ठाकुर आदि कवि इसी धारा के सितारे हैं।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217