जन्म: 1689 ईसवी (लगभग)
निधन: 1739 ईसवी (लगभग)
घनानन्द और सुजान
घनानन्द के काव्य में ‘सुजान’ का ही वर्णन मिलता है- पर यह सुजन कौन थी, इसका विवेचन भी आवश्यक हो जाता है । घनानन्द मुहम्मदशाह रंगीले के दरबार में खास-कलम (प्राइवेट सेक्रेटरी) थे । इस पर भी - फारसी में माहिर थे- एक तो कवि और दूसरे सरस गायक । प्रतिभासंपन्न होने के कारण बादशाह का इन पर विशष अनुग्रह था । मुहम्मदशाह रंगीले के दरबार की एक नृत्य-गायन विद्या में निपुण सुजान नामक वेश्या से इनको प्रेम हो गया । इधर सुजान की इन पर अनुरक्ति और दूसरी ओर बादशाह के खास-कलम-इन दोनों बातों से-घनानन्द की उन्नति से सभी दरबारी मन ही में ईर्ष्या करते थे । अंततः उन्होंने एक ऐसा षड्यंत्र रचा, जिसमें घनानन्द पूरी तरह से लुट गए । दरबारी लोगों ने मुहम्मदशाह रंगीले से कहा कि घनानन्द बहुत अच्छा गाते हैं। उनकी बात मानकर बादशाह ने एक दिन इन्हें गाने के लिए कहा, पर ये इतने स्वाभिमानी और मनमौजी व्यक्ति थे कि गाना गाने से इन्होंने इनकार कर दिया । दरबारी लोगों को इस बात का पता था कि बादशाह के कहने से ये कभी गाना नहीं गाएँगे और हुआ भी वही। दरबारी लोग इसी घड़ी की तो प्रतीक्षा कर रहे थे। उनहोंने बादशाह से कहा कि यदि सुजान को बुलाया जाए और वह घनानन्द से अनुरोध करे तो ये अवश्य गाना गाएँगे और यह हुआ भी। बादशाह की आज्ञा से सुजान वेश्या दरबार में बुलाई गई और उसके कहने पर घनानन्द ने गाना सुनाया - सुजान की ओर मुँह करके और बादशाह की और पीठ करके, परंतु इतनी तन्मयता से गाना सुनाया कि बादशाह और सभी दरबारी मंत्र-मुग्ध हो गए। परंतु बादशाह जितने ही आनंद-विभोर गाना सुनते समय हुए थे, उतने ही कुपित गाना समाप्त होने के बाद हुए । यह उनकी बेअदबी थी कि सुजान का कहा उनसे बढ़कर हो गया । फलतः क्रोधित होकर उन्होंने तत्काल घनानन्द को दरबार व राज्य छोड़ने का आदेश दिया । दरबारियों की चाहत पूर्ण हो चुकी थी ।
घनानन्द ने चलते समय सुजान से साथ चलने का आग्रह किया, परंतु उसने अपने जातीय गुण की रक्षा की और घनानन्द के साथ जाना अस्वीकार कर दिया । जान और जहान दोनों ही लुटाकर घनानन्द ने वृंदावन की ओर मुख किया । जीवन से इन्हें पूर्ण विरक्ति हो चुकी थी । वृंदावन में उन्होंने निम्बार्क संप्रदाय में दीक्षा ली । इस संबंध में श्री शंभुप्रसाद बहुगुणा ने लिखा है- ‘जीवन की विरक्ति उनके लिए प्रेमपूर्ण राधा-कृष्ण के चरणों की अनुरक्ति बन गई । मरते दम तक वे सुजान को नहीं भूल पाए । राधा-कष्ण को उन्होंने सुजान की स्मृति बना दिया और निरंतर सुजान के प्रेम में आँसुओं के स्वरों में ये गीत, कवित्त-सवैये लिखते रहे ।’ डॉ. श्रीराम अवध द्विवेदी ने लिखा है कि किसी साधारण बात से अप्रसन्न होकर उन्हें देश-निकाला दे दिया गया था ओर इस अपनानजन्य ‘भावना’ के वशीभूत होकर वे वृंदावन चले गए और मृत्युपर्यंत वहीं रहे । लाला भगवानदीन ने सुजान नामक वैश्या के प्रति घनानन्द की अनुरक्ति का खंडन करते हुए लिखा है- ‘सुजान की इनके प्रति विरक्ति इनके भक्त होने के कारण नहीं थी, अपितु ये स्वयं ‘भगवान् कृष्ण’ के प्रति अनुरक्त होकर वृंदावन में जाकर कृष्ण की उपासना में लग गए थे और अपने परिवार का मोह भी इन्होंने उस भक्तिके कारण त्याग दिया था ।’ परंतु अधिकांश विद्वानों ने घनानन्द का सुजान से प्रेम, बादशाह रंगीले द्वारा देश-निकाला और सुजान के तिरस्कार को सत्य माना है । इतना अवश्य कहा जा सकता है कि घनानन्द के जीवन का अंतिम समय वृंदावन में बीता ।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217